Saturday, January 3, 2015
Challenge
Monday, November 17, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 73
"और अब अपने फाएदे की बात सुनो. तुम तुंरत गाँव वापस जाओ क्योंकि वहीँ तुम्हें एक बड़ा लाभ होने वाला है."
"कैसा लाभ ज्योतिषी महाराज?"
"समय आने पर मालुम हो जाएगा. मैं जाता हूँ. मुझे देर हो रही है." मुसीबतचंद ने उसे रोकना चाहा किंतु वह जल्दी से पीछा छुड़ाकर आगे निकल गया.
"कैसा लाभ हो सकता है?" उसने अपने हाथ की लकीरों को देखना चाहा किंतु कोई सफलता नही मिली.
"थोड़े रुपये और कमा लूँ फिर गाँव को निकल जाऊंगा." उसने स्वयें से कहा और आवाज़ लगता हुआ आगे बढ़ गया.
...................
रोशन और सौम्य मनोहरश्याम के सामने पोर्ट्रेट लेकर पहुँच चुके थे. और अब उसे प्राप्त करने का पूरा किस्सा सुना रहे थे.
जब वे लोग पूरी बात बता चुके तो मनोहरश्याम कुछ क्षण मौन रहकर बोला, "तो ये पता नही लग पाया कि पोर्ट्रेट को चुराने वाला कौन था."
"नहीं. पुलिस को भी ये आभास नही हो पाया कि कब उसके पास से डालरों का सूटकेस पोर्ट्रेट में बदल दिया गया."
"ठीक है. तुम लोग कुछ देर बाद मुझसे मिलना. मैं थोडी देर के लिए एकांत चाहता हूँ. पोर्ट्रेट यहीं छोड़ दो."वे लोग बाहर निकल गए. उनके जाने के बाद मनोहरश्याम ने फोन उठाया और बॉस का नंबर मिलाने लगा. दूसरी ओर से तुंरत सम्बन्ध स्थापित हो गया.
"क्या रहा?" दूसरी ओर से पूछा गया. जवाब में मनोहरश्याम ने पूरी कहानी सुना दी. फिर बोला, "मेरा विचार है कि डालरों और पोर्ट्रेट कि अदला बदली इं.दिनेश के पहाड़ियों तक पहुँचने से पहले ही हो गई थी."
"यह तो साफ़ ही है. इसी कारण से इं.दिनेश को स्पेशल रास्ते से बुलाया गया था. वैसे पोर्ट्रेट मिल जाने से हमारा काफी सरदर्द दूर हो गया." बॉस ने कहा."किंतु यह समस्या अपने स्थान पर है कि वह अज्ञात चोर कौन है और किस प्रकार उसके पास पोर्ट्रेट पहुँचा."
"अज्ञात चोर वही है जिसका चित्र मैंने तुम्हारे पास भिजवाया है. जब हम उसकी भरतपुर में खोज कर रहे थे उस समय तक वह इस शहर में वापस आ चुका था.रही बात पोर्ट्रेट के उस तक पहुँचने की तो इसमें अवश्य हमारे किसी व्यक्ति का हाथ है. जो हमसे गद्दारी कर रहा है.और जब उसका पता चलेगा तभी हम यह ज्ञात कर पायेंगे कि पोर्ट्रेट किस प्रकार उसके पास पहुँचा."
"बॉस, गंगाराम का कई दिनों से कुछ पता नही है. मुझे तो पूरा विश्वास हो गया है कि गद्दार वही है."
Monday, November 3, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 72
"वाह वाह. क्या शानदार बात बताई. " उसने कहकहा लगाया, "बहुत मज़ा आता है गटर में. एक बार मैं गिर चुका हूँ. हर ओर खुशबू ही खुशबू. लगता है जैसे स्वर्ग में पहुँच गए. लेकिन वहां बोतल नही मिल पाती."
"कोई बात नहीं. बोतल तो तुम्हें असली स्वर्ग में भी नही मिलेगी."
"ऐसी बात है." वह तैश में आकर बोला, "फिर तो मैं स्वर्ग बिल्कुल नही जाऊँगा. मैं तो नर्क जाऊँगा. वहां तो बोतल मिलेगी?"
"जैसी आपकी मर्ज़ी. पाँच रुपये निकालो ताकि मैं आगे बढूँ."
"निकाल रहा हूँ. ऐसी भी क्या जल्दी है. आओ एक पैग हो जाए. मैं तो यारों का यार हूँ." उसने मुसीबतचंद का हाथ पकड़कर खींचा.
"नहीं. शराब मैं ने सौ साल पहले ही छोड़ दी थी. अब मेरी फीस पाँच रुपये निकालो."
"दे रहा हूँ. पाँच क्या मैं तुम्हें पाँच लाख दे रहा हूँ." उसने अपनी जेब में हाथ डाला और एक लॉटरी का टिकट निकालकर मुसीबतचंद की ओर बढ़ा दिया. जिसका पहला इनाम पूरे पाँच लाख का था."
"ये क्या दे रहो हो. चलो ठीक है आज मैं भी अपना भाग्य देख लूँ." उसने टिकट जेब में रख लिया और आगे बढ़ गया. शराबी भी झूमता हुआ आगे निकल गया.
कुछ दूर जाने के बाद अचानक मुसीबतचंद को कुछ ध्यान आया और वह जेब से टिकट निकालकर गौर से देखने लगा.
"धत तेरे की. ये तो छः महीने पुराना टिकट है." उसने टिकट वहीँ फाड़कर फेंक दिया.
थोडी दूर और आगे बढ़ने पर उसे सामने से एक और व्यक्ति आता दिखाई दिया. जिसने एक हाथ में सूटकेस पकड़ रखा था तथा दूसरे कंधे से बैग लटका रखा था."
"केवल पाँच रुपये में अपने भविष्य के बारे में सब कुछ जान लो." उसे देखते ही मुसीबतचंद ने आवाज़ लगाई. जब उस व्यक्ति ने कोई ध्यान नही दिया तो मुसीबतचंद उसके पास जाकर बोला, "भाई साहब, मैं आपका फ्यूचर बहुत ब्राईट देख रहा हूँ."
"ज़रूर देख रहे होगे. क्योंकि मैं स्वयें अपने फ्यूचर को अच्छी तरह जानता हूँ."
"आप कैसे जानते हैं?" मुसीबतचंद ने चौंक का पूछा."इसलिए क्योंकि मैं स्वयें ज्योतिषी हूँ. मैं ने यूरोप की प्रसिद्ध हस्तियों के भाग्य में लिखे को बताया है. कहो तो तुम्हारा भी भूत, भविष्य, वर्तमान सब कुछ बता दूँ."
"अपने बारे में तो मुझे भी जानना है. बहुत दिनों से मैं इस काम के लिए किसी को ढूँढ रहा था." मुसीबतचंद ने फ़ौरन अपना हाथ उसकी ओर बढ़ा दिया. वह कुछ देर उसका हाथ देखता रहा फ़िर बोला, "तो तुम्हारा नाम मुसीबतचंद है. तुम गाँव से आये हो. यहाँ पर हंसराज नाम के एक व्यक्ति के घर में रहे. जो बाद में तुम्हें छोड़कर कहीं चला गया."
मुसीबतचंद यह बातें सुनकर भौंचक्का हो गया, "इतना तो मैं भी किसी के बारे में बता नही पाता." वह बोला. उसे नही मालूम था कि उसके सामने मेकअप में हंसराज ही खड़ा है.
Friday, October 31, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 71
"जी हाँ. मेरा डाएरेक्ट कान्टेक्ट चाँद, तारों, ग्रहों सभी से हर समय रहता है. जब उनकी छाया मैं किसी की हथेली पर देखता हूँ तो उस हथेली के भविष्य के बारे में सब कुछ जान लेता हूँ."
"तो ठीक है. मेरा हाथ देखकर बताओ कि आजकल मेरे पति देर से घर क्यों आ रहे हैं. "
मुसीबतचंद कुछ देर उसके हाथ की लकीरें देखता रहा फिर बोला, "आजकल एक काली मुसीबत उनका पीछा कर रही है."
"मैं समझ गई. वही कलमुही होगी." अन्दर से क्रोधित स्वर में कहा गया.
"कौन कलमुही?" मुसीबतचंद ने पूछा.
"अरे वही. दफ्तर में क्लर्क है. काली कलूटी है, मगर दिमाग सातवें आसमान पर रहता है. मेरे पति को तो पूरी तरह अपने वश में कर लिया है. हाय हाय मेरी किस्मत फूटी थी जो ऐसा रंगीला पति मिला. शादी से पहले कहा करते थे कि शादी के बाद किसी लड़की की ओर आंख उठाकर भी न देखूँगा. अब तो मेरी ही ओर आंख उठाकर नही देखते. क्या बताऊँ." अन्दर शायद अपने माथे पर दोहत्थड़ मारा गया. मुसीबतचंद सकपकाया हुआ वहां खड़ा था.
उसकी समझ में नही आ रहा था कि अन्दर जाकर दिलासा दे या चुपचाप वहां से खिसक ले. किंतु खिसकने में पाँच रुपये की हानि हो रही थी. "बहन जी, सब्र कीजिये. बहुत जल्द हालत बदलेंगे और आपके पति आपकी ओर वापस पलट आयेंगे." वह बोला.
"अरे कैसे सब्र कर लूँ, चंद्राअचार जी. मैं तो अब छोडूंगी नहीं उन्हें. आने दो शाम को. अभी तक तो मुझे केवल शक था. आज वह ख़बर लूंगी कि ..." दांत पीसते हुए कहा गया.
"ज़रूर ख़बर लीजियेगा बहन जी. मेरा विचार है कि घर के सारे मज़बूत बर्तन ढूँढकर रख लीजिये. अच्छा मैं चलूँगा. यदि मेरी फीस दे दीजिये तो कृपा होगी." अन्तिम वाक्य वह धीरे से बोला.
अन्दर से उसी प्रकार बडबडाते हुए पॉँच रुपये थमा दिए गए.एक बार फिर वह आवाज़ लगाते हुए आगे बढ़ने लगा.
अभी वह थोडी ही दूर गया था कि सामने से आते एक व्यक्ति ने उसे रोक लिया. उस व्यक्ति के पांव लड़खड़ा रहे थे. और मुंह से आती गंध यह बता रही थी कि वह अभी अभी एक आध बोतल चढाकर निकला है.
"ए, क्या तुम भविष्य की बातें बताते हो?" उसने मुसीबतचंद के सामने ऊँगली लहराई.
"मेरा हाथ देखकर बताओ कि मुझे अगली बोतल कब मिलेगी." उसने लडखडाती ज़बान के साथ पूछा और अपना हाथ आगे बढ़ा दिया.
मुसीबतचंद ने उसका हाथ देखा और बोला, "गटर में गिरने के बाद."
Tuesday, October 28, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 70
जैसे ही इं.दिनेश की जीप कंट्रोल रूम के सामने रुकी, एक सिपाही उसके पास आया.
"आई जी साहब स्पेशल रूम में आपका इन्तिज़ार कर रहे हैं."
"ठीक है, मैं आता हूँ." इंजन बंद करने के बाद इं.दिनेश अन्दर प्रविष्ट हो गया.
"क्या समाचार है?" इं.दिनेश को देखते ही आई जी ने पूछा.
"वहां पर तो कहानी ही दूसरी हो गई. पोर्ट्रेट दूसरी पार्टी के पास चला गया और दस लाख डालर भी गए."
"मैं कुछ समझा नहीं. तुम विस्तार से बताओ."इं.दिनेश ने आरम्भ से अंत तक पूरी बात बता दी. इसमें डाल गिर जाने के कारण जंगल में जीप रोकने का किस्सा भी सम्मिलित था.
"तो इसका अर्थ ये हुआ कि डाल गिराकर पहले तुम्हारी जीप रोकी गई. फिर वहीँ पर उस चोर ने डालरों से पोर्ट्रेट की अदला बदली कर ली. फिर जब तुम पहाड़ियों पर पहुंचे तो वहां एक दूसरी पार्टी ने तुमसे पोर्ट्रेट हासिल कर लिया जो पहले से उसकी ताक में थी."
"दूसरी पार्टी का तो पता चल जाएगा, क्योंकि सूटकेस में छिपा दूरी व दिग्दर्शक यंत्र बता देगा कि वे लोग उसे कहाँ ले गए हैं. किंतु उस व्यक्ति का पता लगाना बहुत कठिन हो गया है जिसने डालर उड़ाए हैं." इं.दिनेश ने कहा.
"उसके बारे में बाद में विचार करेंगे. फिलहाल तुम पोर्ट्रेट हासिल करने की तय्यारी करो. क्योंकि अब समय बहुत कम रह गया है. कल शाम तक हमें उसे वापस इटली भेजना है."
"ठीक है. मैं अभी रेड डालने की तय्यारी करता हूँ. उन लोगों के फोटो भी मेरी अंगूठी के माइक्रो कैमरे में मौजूद हैं." इं.दिनेश बाहर जाने लगा.
"पता लगाओ कि सूटकेस कहाँ है. फिर मैं भी चलता हूँ." आई.जी. ने कहा. इं.दिनेश बाहर निकल गया.
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मुसीबतचंद एक बार फिर ज्योतिषी के वेश में आ गया था. अब उसने पैसे कमाने का उपाए सोच लिया था.इस समय उसके हाथ में एक पोटली थी और वह एक गली से गुज़रते हुए चिल्ला रहा था, "विश्व के जाने माने ज्योतिषी श्री चंद्राचार्य से अपना हाथ दिखवा लो और केवल पाँच रुपये में भूत, भविष्य और वर्तमान सभी का हाल जान लो."
फिर एक दरवाज़ा खुला और उसकी दरार से एक हाथ निकलकर उसे बुलाने लगा. मुसीबतचंद तुंरत उसकी ओर बढ़ा.
"क्या तुम हाथ देखकर सब कुछ बता सकते हो?" अन्दर से महीन आवाज़ में पूछा गया.
Saturday, October 25, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 69
उसने सूटकेस भूमि पर रखा और खोलने लगा. इं.दिनेश भी गौर से उधर ही देख रहा था. उस व्यक्ति के हाथों में रखी टॉर्च की रोशनी सूटकेस पर पड़ रही थी.फिर सूटकेस के खुलते ही दोनों के मुंह से एक साथ निकला, "ओह! ये क्या?"
दोनों के स्वरों में विस्मय था. क्योंकि सूटकेस में डालरों की बजाए लेओनार्दो का पोर्ट्रेट रखा था.उस व्यक्ति ने प्रश्नात्मक दृष्टि से इं.दिनेश की ओर देखा.
"मुझे नही मालूम कि यह पोर्ट्रेट कैसे इसमें आ गया. जब मैं इसे लेकर चला था तो इसमें डालर भरे थे.: इं.दिनेश ने आश्चर्य से सूटकेस की ओर देखते हुए कहा.
"क्या बात है रोशन?" दूसरा व्यक्ति पहाडियों की ओट से निकला जिसके कंधे से राइफल लटक रही थी.
"यहाँ चमत्कार हुआ है सौम्य, इस सूटकेस में डालर लेओनार्दो के पोर्ट्रेट में बदल गए हैं." इस समय उन्हें यह भी ध्यान नही रह गया था कि इं.दिनेश के सामने वे लोग एक दूसरे को उनके नामों से पुकार रहे हैं.
"हूँ, इसका मतलब हुआ कि सौदा पहले ही गया. मेरा विचार है कि यह असली पोर्ट्रेट है जो डालरों के बदले में हासिल किया गया है." सौम्य ने इंसपेक्टर की ओर देखा.
"किंतु यह कैसे सम्भव है? मेरी रास्ते में किसी से मुलाकात तक नही हुई. तुम पहले व्यक्ति हो जो यहाँ पर मिले हो. मैं तो पहले यही समझा था की तुम्हारे पास ही पोर्ट्रेट है. किंतु अब समझ में आया कि तुम किसी दूसरी पार्टी के हो." इं.दिनेश बोला.
रोशन ने कुछ बोलना चाहा किंतु सौम्य ने उसे रोकते हुए कहा, "ठीक है. हम तो वैसे भी पोर्ट्रेट हासिल करने आये थे. और वह हमें मिल गया. रोशन सूटकेस उठा लो, हमें अब निकल चलना चाहिए. इंसपेक्टर अब तुम वापस पुलिस स्टेशन जाओ. हमारा पीछा करने की कोशिश मत करना क्योंकि यह तुम्हारे लिए खतरनाक हो सकता है."
रोशन ने सूटकेस उठाया और वे दोनों वापस पहाडियों की ओर चले गए. इं.दिनेश उन्हें जाता देखता रहा. जब वे दोनों गायब हो गए तो उसके होंटों पर एक रहस्यमय मुस्कराहट उभरी. फिर वह जीप में बैठकर वापस उसी रास्ते पर रवाना हो गया जिधर से आया था.
Friday, October 17, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 68
इं. दिनेश ने सिगरेट समाप्त करने के बाद रेडियम डायेल की घड़ी पर दृष्टि की. आठ बजकर दस मिनट हो गए थे. उसने मुंह खोलकर एक जम्हाई ली और बडबडाया, "कहाँ मर गया साला. लगता है डर गया. सपने में आने लगी होंगी पुलिस की हथकडियाँ."
उसी समय पहाडियों की ओट से एक व्यक्ति बाहर निकला जिसने अपने गले में लाल रूमाल लपेट रखा था. वह धीरे धीरे इं.दिनेश की ओर बढ़ने लगा. इं.दिनेश भी उसे देखकर सावधान होकर बैठ गया.
"पोर्ट्रेट कहाँ है?" पास आने पर इं.दिनेश ने उससे पूछा, क्योंकि वह व्यक्ति खाली हाथ था.
"हमें नहीं मालूम." आगंतुक ने उत्तर दिया.
"कमाल है. तुम्हें नहीं मालूम तो क्या इं पहाडियों को मालूम होगा! किस बात का सौदा करने के लिए मुझे यहाँ बुलाया गया है?" इं.दिनेश ने अपना बायाँ हाथ हिलाते हुए क्रोधित स्वर में कहा. आगंतुक को नहीं मालूम था कि इस बीच इं.दिनेश के हाथ की अंगूठी के कैमरे में उसकी तस्वीर कैद हो चुकी है. "मैंने सच कहा है कि मुझे पोर्ट्रेट के बारे में कुछ नहीं मालूम. मैं भी उसी व्यक्ति की प्रतीक्षा में था जिसे अब तक आ जाना चाहिए था. मैंने अभी अभी मोबाइल पर अपने बॉस से बात की है. उधर से आदेश आया है कि यदि पोर्ट्रेट नहीं मिला तो दस लाख डालर इं.दिनेश से लेकर आ जाओ."
"ओह! मैं समझा." इं.दिनेश ने सर हिलाया, "तो यह तुम्हारी योजना थी कि पोर्ट्रेट भी तुम रख लोगे और डालर भी हासिल करोगे. लेकिन यह सम्भव नही है." कहते हुए इंसपेक्टर ने रिवाल्वर निकाल लिया.
"रिवाल्वर चलाने से पहले तुम यह जान लो कि इस समय तुम्हारे ऊपर तीन राइफलें तनी हैं जो किसी भी समय तुम्हारे परखच्चे उदा सकती हैं. नमूना देख सकते हो." कहते हुए उस व्यक्ति ने अपनी टॉर्च से कोई संकेत किया और वहां के वातावरण में राइफलों की तड़तड़ाहट गूँज उठी.
"अब फ़ैसला तुम्हारे ऊपर निर्भर है." उसने कहा. इं.दिनेश ने यही उचित समझा कि रिवाल्वर दोबारा अपनी जेब में रख ले.
"ठीक है. तुम डालरों का सूटकेस ले जाओ. किंतु याद रखना कि अधिक देर क़ानून के हाथों नहीं बच सकोगे." इं.दिनेश ने उसे घूरते हुए कहा.
"क़ानून से तो हमारी आंख मिचौली चलती है. तुम सूटकेस मेरे सामने रख दो ताकि हम अपना इत्मीनान कर सकें."
"तुम स्वयम उठा लो. जीप की पिछली सीट पर रखा है."
वह व्यक्ति आगे बढ़ा और जीप से सूटकेस निकाल लाया.
Tuesday, October 14, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 67
"अच्छा तो अब मैं चलता हूँ." मुसीबतचंद उठ खड़ा हुआ. वेटर के कानों में मुसीबतचंद के शब्द नहीं पड़ सके. क्योंकि उसकी ऑंखें बंद थीं और वह भविष्य के रंगीन सपनों में खो गया था.
"अब मैं मालिक हो जाऊंगा. मैं मालिक हो गया. मैं मालिक हूँ." वह बडबडा रहा था. उसे नहीं मालुम था कि ढाबे का मालिक एक ग्राहक की शिकायत पर उसके पास आ खड़ा हुआ है. उस ग्राहक के बुलावे पर वेटर ने ध्यान नही दिया था.
"चटाख!" एक थप्पड़ वेटर के मुंह पर पड़ा और वह सपनों कि दुनिया से बाहर आ गया.
"क्यों बे," मालिक ने डपटा, "यहाँ खड़े खड़े सोने के लिए दो सौ रुपिया महीना मिलता है. चल उधर जा के पानी दे. हरामखोर कहीं का."
................
इं.दिनेश पहाड़ियों पर पहुँच चुका था और अब उस अज्ञात व्यक्ति कि प्रतीक्षा कर रहा था जिससे उसे डालरों और पोर्ट्रेट की अदला बदली करनी थी.उसने स्टेअरिंग व्हील से हाथ हटाये और जीप की सीट से पीठ टिका ली. फिर ऑंखें बंद करके दो तीन लम्बी सांसें लीं और जेब में हाथ डालकर सिगरेट टटोलने लगा.
सिगरेट सुलगाने के बाद उसने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई, किंतु उस अज्ञात व्यक्ति का कहीं पता नही था.
उधर गंगाराम के भेजे व्यक्ति भी इं.दिनेश को जीप में अकेला देख रहे थे. ये संख्या में चार थे जिनमें सौम्य और रोशन सम्मिलित थे. ये लोग भी बेताबी से उस अज्ञात लुटेरे की प्रतीक्षा कर रहे थे जिसने उनके पास से पोर्ट्रेट इस प्रकार उड़ाया था कि उन्हें ख़बर भी न हो सकी और अब इं.दिनेश से सौदा करने वाला था.
"यार, काफी देर हो गई. अब तक वह आया नहीं." रोशन सौम्य के कान में फुसफुसाया.
"हाँ. पता नहीं क्या बात हो गई. उसे तो पहले से यहाँ मौजूद रहना चाहिए था." सौम्य भी धीरे से बोला.
"कहीं ऐसा तो नहीं कि उसे हमारी उपस्थिति का पता चल गया हो?"
"ऐसा कैसे हो सकता है?"
"मेरा विचार है कि हममें से कोई व्यक्ति उससे मिला हुआ है. वरना पोर्ट्रेट उसके पास कैसे पहुँच गया. उसी ने इस बात की भी सूचना दे दी होगी."
"थोडी देर और प्रतीक्षा करते हैं. फिर कोई दूसरा एक्शन लेंगे." सौम्य बोला. फिर दोनों मौन हो गए
Saturday, October 11, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 66
"बात यह है कि मैं एक ज्योतिषी हूँ. और तुम्हारे भाग्य की रेखाएं देख रहा हूँ. बहुत शानदार है तुम्हारा भविष्य."
"कुछ बताइये न ज्योतिषी महाराज मेरे बारे में." वेटर खुश होकर बोला.
"मुझे यह ज्ञात हुआ है कि तुम्हारा पेट अक्सर ख़राब रहता है." ज्योतिषी जी ने रहस्योदघाटन किया.
"जी हाँ. यह बात तो है. जब भी कुछ खाता हूँ तुंरत निकल जाता है. समझ में नही आता क्या करुँ." वेटर ने मुंह बनाकर कहा.
"चिंता न करो. यह केवल कुछ दिनों की बात है. यदि मेरी सलाह मानो तो केवल कुछ दिनों में तुम्हारा पेट ठीक हो सकता है."
"बताइये महाराज कि मैं क्या करुँ." उसने हाथ जोड़कर कहा.
"ऐसा करो तुम पहले बिल दे आओ, फिर मैं तुम्हें विस्तार से बताऊंगा." मुसीबतचंद ने अपनी जेब में हाथ डाला.
"रहने दें ज्योतिषी महाराज. आपका बिल मैं अदा कर देता हूँ. आप जैसे लोगों के दर्शन रोजाना कहाँ होते हैं." वेटर ने मुसीबतचंद को रोक दिया और स्वयं अपनी जेब से पन्द्रह रूपए निकालकर ढाबे के मालिक को दे आया. मुसीबतचंद का उपाए सफल हो गया था.
"हाँ, अब बताइये महाराज." वेटर ने वापस आकर कहा."हाँ, तो तुम्हारे लिए यह उपाए है कि तुम बेसन की रोटी और लहसुन की चटनी खूब खाया करो."
"मगर महाराज, बेसन की रोटी से तो और पेट ख़राब हो जाएगा." वेटर ने असमंजस की स्थिति में कहा.
"यही तो इसका मूल है. जिस प्रकार ज़हर का तोड़ ज़हर है, उसी प्रकार पेट का इलाज मेरा बताया हुआ भोजन है. समझ गए?" मुसीबतचंद ने हाथ हिलाकर कहा.
"समझ गया. अच्छी तरह समझ गया. आप का बहुत बहुत धन्यवाद् महाराज." वेटर ने हाथ जोड़कर कहा.
"ये तो हुआ तुम्हारा इलाज. अब मैं तुम्हें वह बात बता रहा हूँ जो मैंने तुम्हारी हाथ की लकीरों में पढ़ी है."
"कौन सी बात ज्योतिषी महाराज?" वेटर ने उत्सुकता से पूछा.
"वह यह कि भविष्य में यह होटल, जिसमें तुम काम कर रहे हो इसके तुम्ही मालिक हो जाओगे."
"क्या सच?" खुशी से वह चीख उठा और आसपास बैठे लोग चौंक कर उसकी ओर देखने लगे.
"हाँ, मेरी भविष्यवाणी कभी ग़लत नही होती. एक दिन आएगा जब यह ढाबा फाइव स्टार होटल में बदल जाएगा और उस समय तुम इसके मालिक होगे."
"म..मम...मैं.." खुशी के कारण वेटर के मुंह से आवाज़ निकालनी बंद हो गई.
Friday, October 10, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 65
मुसीबतचंद ने गाँव जाना फिलहाल कैंसिल कर दिया था. क्योंकि अब उसे उस समय तक शहर में रूकना था जब तक की उसका फोटो न मिल जाता. जिसे फोटोग्राफर ने दो दिन बाद देने को कहा था.
इस समय वह एक पेड़ तले बैठा हुआ था और उसे जोरों की भूक लग रही थी. उसने अपनी जेब टटोली और फिर उसकी ऑंखें चमक उठीं. क्योंकि जेब से दस रूपए निकल आए थे.
"चलो, इस समय का खर्च तो निकल आया. किंतु बाद के लिए क्या होगा. खैर देखा जाएगा, अभी तो चलकर भोजन कर लूँ." वह उठकर एक ढाबे की ओर चल पड़ा. उसे विश्वास था की पेट भरने के बाद उसे कोई ऐसी तरकीब सूझ जाएगी जिससे वह पैसों का जुगाड़ कर लेगा.
वह फिर बडबडाया, "यह कमबख्त हंसराज मुझे मुसीबत में छोड़कर न जाने कहाँ गाएब हो गया. मुझे तो कुछ गड़बड़ लगती है. पता नही उस आदमी से फोटोग्राफर किसका हुलिया बता रहा था. मुझे तो हंसराज का ही हुलिया मालूम पड़ा. और फिर उस आदमी ने आर्ट गैलरी वाला पोर्ट्रेट भी तो उसे दिखाया था. खैर मुझे क्या." उसने अपने सारे विचारों को एक झटका दिया क्योंकि अब ढाबा उसके सामने पहुँच गया था.
वह उसके अन्दर प्रविष्ट हो गया. अन्दर कुछ मेजें भरी हुई थीं, बाकी खाली थीं. उसने एक खाली मेज़ चुनी. कुछ देर बाद उसके सामने भोजन आ चुका था.
भोजन करने के बाद उसने वेटर को बिल लाने के लिए बुलाया.
"पन्द्रह रूपए." वेटर ने मशीनी अंदाज़ में बताया और मुसीबतचंद के हाथों के तोते उड़ गए. क्योंकि उसकी जेब में केवल दस रूपए मौजूद थे.
"कमाल है. हमारे गाँव में तो केवल तीन रूपए में पूरा पेट भर जाता था." वह बडबडाया.
"जी कुछ कहा तुमने?" वेटर ने आगे झुककर पूछा. उसी समय मुसीबतचंद को एक उपाए समझ में आ गया.
"कुछ नहीं. मैं तो तुम्हारे मस्तक की लकीरें देख रहा था. ज़रा अपना हाथ आगे बढ़ाना."
मुसीबतचंद कुछ क्षण उसका हाथ गौर से देखता रहा फिर मानो स्वयं से बोला, "केवल कुछ दिनों की बात है."
"क्या? मैं समझा नहीं." वेटर ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा.
Tuesday, October 7, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 64
जीप उसके पास से गुज़रती हुई आगे बढ़ी. और फिर एक झटके से रूक गई. क्योंकि सामने हंसराज द्वारा काटी गई डाल ने उसका रास्ता रोक दिया था."ओह, यह डाल कहाँ से बीच में आ गई." जीप में बैठा व्यक्ति, जो वास्तव में इं.दिनेश था, बडबडाया. वह जीप से नीचे उतरकर डाल के पास पहुँचा और उसे खींचकर किनारे लगाने की कोशिश करने लगा.
हंसराज तेज़ी से अपने स्थान से उठा और जीप की और झुक कर जाने लगा. इं.दिनेश डाल हटाने में तल्लीन था. इसके अलावा जीप की घरघराहट में हंसराज के जीप तक पहुँचने की आहट छुप गई थी.वह जीप तक पहुँचा और फिर उसका निरीक्षण करने के बाद उसमें चढ़ गया. नीले रंग का एकमात्र सूटकेस वहां रखा हुआ था. हंसराज ने उसे थोड़ा सा खोलकर देखा. पेन्सिल टॉर्च की रौशनी में नोटों की गड्डियां दिखाई पड़ रही थीं. उसने दोबारा उसे बंद कर दिया. अब वह उसे लेकर नीचे उतर रहा था.इं.दिनेश डाल को हटाने में तल्लीन था और साथ साथ बडबडाता भी जा रहा था. इस बड़बड़ाहट में गालियों का भी समावेश था. हंसराज अपने स्थान पर वापस आया और सूटकेस खोलकर सारे नोट वहीँ पलट दिए. अब उसने अपना सूटकेस निकाला और उसे खोलकर उसमें से लेओनार्दो का पोर्ट्रेट निकाला. जीप से निकाले गए खाली हो चुके सूटकेस में उसने यह पोर्ट्रेट रखकर उसे बंद कर दिया.
अब वह दोबारा उस सूटकेस को लेकर जीप की ओर जा रहा था. क्योंकि वह ठगी के भी सौदे में ईमानदारी पर विश्वास रखता था. चूंकि उसने पोर्ट्रेट की कीमत हासिल कर ली थी, अतः पोर्ट्रेट की वापसी उसका फ़र्ज़ थी.
जीप में सूटकेस वापस रखकर वह पलट आया. इं.दिनेश को आभास तक न हो सका कि उसकी जीप में किस प्रकार का खेल हो चुका है. वह पसीने से तर डाल को खींचने में लगा हुआ था, जो अच्छी खासी दूर हट चुकी थी.हंसराज ने अब अपने खली सूटकेस में झाडियों में पड़े डालरों को रखना आरम्भ कर दिया. कुछ ही देर में सारे डालर उसके सूटकेस में शिफ्ट हो चुके थे.
अब तक इं.दिनेश डाल को सड़क पर से हटाने में कामयाब हो चुका था.उसने रूमाल से अपना पसीना पोंछा और जीप तक वापस आया. अब वह ड्राइविंग सीट पर बैठ चुका था.फिर कुछ सोचकर उसने टॉर्च निकाली और पीछे की सीट पर उसका प्रकाश डाला. वहां सूटकेस अपने स्थान पर मौजूद था. उसने चैन की साँस ली और अपनी जीप आगे बढ़ा दी.
उसके आगे बढ़ते ही हंसराज तेज़ी से एक ओर को बढ़ गया. उसके एक हाथ में बैग तथा दूसरे हाथ में सूटकेस था. इससे पहले की इं.दिनेश को अपने सूटकेस की असलिअत मालूम होती, वह जल्द से जल्द यहाँ से दूर निकल जाना चाहता था.
Saturday, October 4, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 63
हंसराज ने पहाडियों की सीमा आरंभ होने से लगभग पाँच किलोमीटर पहले ही बस छोड़ दी. इस समय वह जिस स्थान पर खड़ा था, वहां से आठ दस कदम दूर मेन रोड से एक शाख निकल कर जंगल के अन्दर गई थी. उस जंगल का विस्तार लगभग दो किलोमीटर था और उसके बाद वह रास्ता एक मैदान से होता हुआ पहाडियों पर पहुँचता था. हंसराज ने इसी रास्ते से उस सरकारी नुमाइंदे को बुलाया था जिसे डालरों से भरा सूटकेस देकर पोर्ट्रेट लेना था.
हंसराज ने उस रास्ते पर चलना आरंभ कर दिया. यह रास्ता इतना चौड़ा था कि एक जीप आसानी से उस पर गुज़र सकती थी. हालाँकि मेन रोड भी आगे जाकर पहाडियों कि और घूम जाती थी, किंतु यह रास्ता शोर्ट कट पसंद करने वालों के लिए काफी उपयुक्त था.इस समय शाम के छह बज रहे थे और जंगल में अच्छा खासा अन्धकार हो गया था. अतः हंसराज ने जेब से पेन्सिल टॉर्च निकालकर जला ली और उसकी रौशनी में आगे बढ़ने लगा.
जंगली जानवरों की आवाजें लगातार सुनाई पड़ रही थीं. किंतु हंसराज को उधर से कोई खतरा नही था. उसे मालूम था कि इस जंगल में कोई खतरनाक जानवर नही है. वह चलते हुए दाएं बाएँ भी देखता जा रहा था.
लगभग बीस पच्चीस मिनट चलने के बाद वह रूक गया और ऊपर देखने लगा जहाँ एक पेड़ की डाल काफी नीचे झुकी थी. इस स्थान से जंगल का दूसरा छोर काफी पास था. उसने सूटकेस को एक झाड़ी में छिपाया और बैग लेकर पेड़ पर चढ़ गया. फिर उसने बैग से लकड़ी काटने की आरी निकाली और अगले ही पल वह उस डाल पर तेज़ी से हाथ चला रहा था जो सड़क पर झुकी थी.
जंगल के जानवरों के शोर में आरी की ध्वनि भी किसी जानवर की आवाज़ प्रतीत हो रही थी. उसका मस्तक पसीने से भीग गया, किंतु वह लगातार आरी चलाए जा रहा था. फिर उसका हाथ तब रुका जब डाल टूटकर सड़क पर आ गिरी. उसने अपनी घड़ी में समय देखा. इस समय ठीक सात बज रहे थे.
उसने पहाडियों की ओर देखा. चूंकि गर्मी का मौसम था अतः अभी भी पहाड़ियों पर हलकी रौशनी थी, जो तेज़ी से अन्धकार में बदल रही थी.हंसराज ने बैग से एक दूरबीन निकाली और उसे अपनी आंखों पर चढाकर दोबारा पहाड़ियों की ओर देखने लगा. फिर उसके होंठों पर एक हलकी सी मुस्कराहट चमकी क्योंकि उसे वहां किसी व्यक्ति के कपड़े की झलक दिखाई पड़ गई थी. जो एक चट्टान की ओट में बैठा था.
"तो मेरे स्वागत का पहले से इन्तिजाम है." वह बड़बड़ाया.वह पेड़ से नीचे उतरा और उस झाडी के पास पहुँचा जहाँ उसने सूटकेस छिपाया था. वह भी वहीँ छिपकर बैठ गया. कीड़े मकोड़ों से बचने के लिए उसने लॉन्ग बूट पहन रखे थे.
समय बीतता रहा और वह वहीँ बैठकर ऊंघता रहा. फिर उस समय लगभग साढ़े सात बजे होंगे जब एक जीप की घरघराहट उसे सुनाई दी. और वह चौकन्ना होकर बैठ गया.
Friday, October 3, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 62
"तो वह भरतपुर से वापस आ गया है. और आज पहाडियों पर पोर्ट्रेट और डालरों का आदान प्रदान होगा." गंगाराम ने कहा. उसके सामने वही अज्ञात इन्फोर्मेर बदले हुए हुलिए में बैठा था.
"हाँ. यदि तुम उसे वहां पकड़ सको तो न केवल पोर्ट्रेट हासिल हो जाएगा बल्कि यह भी मालुम हो जाएगा की पोर्ट्रेट उसके पास किस प्रकार पहुँचा."
"तुम सही कहते हो. मैं उसे पकड़ने के लिए पहाडियों पर अपने आदमी लगा देता हूँ." गंगाराम ने फोन की ओर हाथ बढाया.
"किंतु इसमें बहुत सावधानी की आवश्यकता है. ज़रा सी भी चूक न केवल आर.डी.एक्स. से भरे सूटकेस में पोर्ट्रेट को उड़ा सकती है बल्कि वहां खड़े हमारे आदमी भी घायल हो सकते हैं."
"हम उसका हाथ रिमोट तक पहुँचने से पहले ही उसे दबोच लेंगे. इस काम में रोशन और सौम्य विशेषज्ञ हैं. उनके अलावा दो अन्य व्यक्ति भी वहां भेज दिए जाएँगे. पुलिस या किसी अन्य संभावित खतरों से निपटने के लिए. वैसे तुम्हारा आई जी काफी तेज़ दिमाग का है. उसने भी कोई ठोस योजना सोच रखी होगी उसे पकड़ने के लिए."
"यदि कोई ऐसी योजना होगी भी तो मुझे ज्ञात नही है."
"मेरा विचार है कि पोर्ट्रेट हासिल करने से पहले वह कोई खतरा नही उठाएगा. जबकि हम लोग उस व्यक्ति को पहले ही पकड़ने की ताक में हैं. इस तरह टकराव की संभावना बहुत कम है." गंगाराम कह रहा था, "इसके अलावा पहचान के लिए हमारे पास उस व्यक्ति का चित्र भी है. जिसकी एक एक कापी हम सौम्य वगैरा को दे देंगे."
गंगाराम ने रिसीवर उठाया और मनोहरश्याम को फोन पर ज़रूरी निर्देश देने लगा. लगभग आधे घंटे की बातचीत के बाद उसने रिसीवर रख दिया. फोन पर बात करते समय उसकी आवाज़ पूरी तरह बदल जाती थी.
"अब तुम्हें जल्दी करना चाहिए. क्योंकि पाँच बज चुके हैं." अज्ञात इन्फोर्मेर ने अपनी घड़ी देखते हुए कहा.
"चिंता मत करो. छह बजे से पहले हमारे आदमी पहाड़ी पर होंगे. जबकि सौदे का टाइम आठ बजे का है. अब तुम जाओ वरना वहां तुम्हारी लम्बी अनुपस्थिति शक का कारण बन सकती है."
"फ़िक्र न करो. वहां कोई मुझ पर संदेह नही कर सकता. वैसे अब मैं चलता हूँ." वह उठ खड़ा हुआ.
..............continued
Wednesday, October 1, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 61
"तो तुम जा रहे हो पहाडियों पर!" सोनिया ने हंसराज को तय्यारी करते देखकर कहा.
"हाँ. आशा है कि वे लोग हमारी बात मान गए होंगे." हंसराज के सामने आईना रखा हुआ था, जिसमें देख देखकर वह अपना मेकअप कर रहा था.
"मेरा तो दिल धड़क रहा है." सोनिया के चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं.
"मुझे विश्वास है कि वह मेरे इश्क में धड़क रहा है. डार्लिंग, तुम फ़िक्र मत करो. इस वारदात के बाद हम ज़रूर शादी कर लेंगे. फिर रोजाना तुम मुझे हलवा पूरी खिलाना और मैं तुम्हें देख देख कर वह हलवा पूरी खाता रहूँगा." हंसराज ने प्यार से सोनिया की आंखों में झाँका. उसके चेहरे पर आने वाले समय का कोई तनाव नही था.
"ज़्यादा बकवास मत करो." सोनिया ने लाल होते गालों के साथ उसे डांटा, "मैं तो सोच रही हूँ कि अगर तुम पकड़े गए तो क्या होगा."
"कुछ नही होगा. कुछ दिन दूसरे घर में रह लेंगे." अब वह अपने होटों के ऊपर नकली मूंछें लगा रहा था. "और मेरा क्या होगा?" सोनिया ने उसे घूरा."तुम तब तक उस सेठ की मिठाइयों के लिए मॉडलिंग कर लेना. आखिर हम उससे दस हज़ार रूपए ......" हंसराज की बात अधूरी रह गई क्योंकि सोनिया ने अपना हाथ चला दिया था. हंसराज के जल्दी से झुक जाने के कारण सोनिया का वार खाली गया.
उसने फिर मारने के लिए हाथ उठाया. किंतु तब तक हंसराज कूदकर दूर पहुँच गया था. वह बोला, "बस बस, बाकी बातें बाद में करेंगे. मैं अब चलता हूँ."
"अभी से. अभी तो केवल पाँच बजे हैं." सोनिया ने दीवार घड़ी की ओर दृष्टि की.
"मुझे पहले से पहुंचना ज़रूरी है. क्योंकि मुझे यह भी देखना है कि कहीं मेरे लिए कोई जाल तो नही बिछाया गया है."
हंसराज ने वहां रखा हुआ छोटा सा बैग और सूटकेस उठाया और बाहर निकल आया. कुछ दूर पैदल चलने के बाद वह एक बस स्टैंड पर पहुँच गया और थोडी देर बाद एक बस के द्वारा वह पूर्व की ओर जा रहा था.
Monday, September 29, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 60
कागज़ पूरा पढने के बाद आई. जी. ने कहा, "इसके अनुसार हमें नोट एक सूटकेस में रखकर पूर्व की पहाडियों पर पहुँचाना होगा. वहीँ पर पोर्ट्रेट और सूटकेस का आदान प्रदान होगा. सूटकेस नीले रंग का बिना लाक का होगा. और उसे हममें से एक व्यक्ति जीप से एक विशेष रास्ते से गुज़रते हुए ले जाएगा."
"विशेष रास्ते से क्यों?"
"क्योंकि उस रास्ते में पहाडियों से पहले एक विशाल मैदान पड़ता है. और उस मैदान में वह आसानी से हमारा निरीक्षण कर सकेगा. और साथ साथ यह भी देख लेगा की उस व्यक्ति के साथ और भी लोग हैं या वह अकेला है."
"इसके लिए उसने समय क्या दिया है?"
"आज रात को आठ बजे."
"क्यों न हम पहले से उन पहाड़ियों में अपने कुछ आदमी भेज दें. वहां आसानी से वे लोग छुप सकते हैं. जैसे ही वह व्यक्ति वहां पहुंचेगा, उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा." इं. दिनेश ने सुझाव दिया.
"हम ऐसा नही कर सकते. क्योंकि इस पत्र के अनुसार उसके पास जो सूटकेस होगा, उसमें पोर्ट्रेट के साथ साथ आर. दी. एक्स. भी होगा. जिसका सम्बन्ध उसकी जेब में पड़े रिमोट से होगा. और खुद उसके बाएँ हाथ की ऊँगली उस रिमोट कंट्रोल के बटन पर होगी. किसी भी खतरे की दशा में बटन पर वह ऊँगली दबाव डालेगी. और सूटकेस के साथ साथ पोर्ट्रेट के भी परखच्चे उड़ जाएंगे." आई. जी. ने बताया.
"ओह. उसकी प्लानिंग वाकई ज़बरदस्त है. हम लोग कुछ नही कर सकते." इं. दिनेश ने अपनी कैप सीधी की.
"कर सकते हैं. किंतु पोर्ट्रेट हासिल करने के बाद. जब तक पोर्ट्रेट उसके पास है तब तक हमें भी मूक रहना होगा."
"डालरों से भरा सूटकेस लेकर कौन जाएगा?"
"तुम. मैं इसके लिए तुम्हें ही भेजना उचित समझता हूँ. एक बात और. जाने से पहले तुम मि.सिन्हा से मिल लेना. वे तुम्हें एक अंगूठी देंगे, जो वास्तव में इन्फ्रारेड माइक्रो कैमरा होगा. जब तुम उस व्यक्ति को सूटकेस दे रहे होगे, उसी समय तुम्हें उसकी एक तस्वीर उस कैमरे से लेनी है." आई.जी. ने अपनी बात जारी रखी, "अब तुम जाकर तैयारी करो. मैं गृहमंत्री और दूसरे लोगों के साथ मीटिंग के लिए जा रहा हूँ. क्योंकि अभी हमें डालरों का प्रबंध करना है."आई. जी. राघवेन्द्र ने उठते हुए कहा.
Tuesday, September 23, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 59
लड़के ने सहमती में सर हिलाया. हंसराज ने जेब से नीला लिफाफा निकला और पाँच के एक नोट के साथ लड़के को देता हुआ बोला, "ये लिफाफा सामने पुलिस स्टेशन में पहुँचा दो. वापसी पर पाँच रूपए और मिलेंगे."
लड़के ने लिफाफा लिया और पुलिस कंट्रोल रूम की ओर बढ़ गया. हंसराज ने उस पर तब तक दृष्टि रखी जब तक वह कंट्रोल रूम के प्रांगण में नहीं पहुँच गया. फिर वह शौपिंग काम्प्लेक्स के अन्दर घुस गया और एक बाथरूम में पहुंचकर अपना हुलिया बदलने लगा.
कुछ देर बाद वह अपनी असली शक्ल में टैक्सी में बैठकर घर की ओर जा रहा था.
............
आई जी राघवेन्द्र के कमरे में इं. दिनेश दाखिल हुआ."एक नीला लिफाफा हमारे पास आया है जिस पर टू आई जी लिखा हुआ है और यह लिफाफा एक...."
"भिखारी के हाथों तुम्हारे पास पहुँचा है। और भिखारी द्वारा बताए गए हुलिए की तुमने आसपास छानबीन कराई किंतु वह व्यक्ति कहीं नहीं मिला जिसने भिखारी को लिफाफा दिया था।" आई.जी. राघवेन्द्र ने इं. दिनेश की बात पूरी कर दी।
"जी हाँ, किंतु..." आश्चर्य से इं. दिनेश ने आई जी की और देखते हुए सहमति में सर हिलाया.
"आश्चर्य मत करो। ऐसे मामलों में आमतौर पर यही होता है. किसी भी अपराधी का सबसे सुरक्षित प्लान. लाओ वह लिफाफा मुझे दो. मैं पढ़ना चाहता हूँ."
इं. दिनेश ने लिफाफा जेब से निकाला और आई.जी. को देते हुए बोला, "क्या मैं लिफाफे पर उँगलियों के निशान तलाशने का प्रयत्न करुँ?"
"सरकार को ब्लेकमेल करने वाला अपराधी यह गलती नही कर सकता. वैसे तुम कोशिश कर सकते हो." आई जी ने लिफाफे में रखा कागज़ निकालकर लिफाफा वापस इं. दिनेश की और बढ़ा दिया.
अब वह कागज़ पढ़ रहा था. जबकि इं. दिनेश लिफाफे को उलट पलट कर देख रहा था.
Sunday, September 21, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 58
"तो यह है वह व्यक्ति, जिसके पास इस समय असली पोर्ट्रेट है." वह बड़बड़ाया. वास्तव में उसके हाथ में हंसराज का चित्र था जिसे चित्रकार ने अपनी स्मृति के आधार पर बनाया था.
उसने मनोहरश्याम से संपर्क स्थापित किया और उधर से जवाब मिलने पर बोला, "अभी तुम्हारे पास एक व्यक्ति का फोटो पहुंचेगा. तुम्हें उस व्यक्ति को भरतपुर में तलाश करना है."
"कौन है यह व्यक्ति?" मनोहरश्याम ने पूछा.
"संभवतः यह वही व्यक्ति है जिसके पास इस समय असली पोर्ट्रेट है. यदि यह हमारी गिरफ्त में आ जाए तो न केवल हम पोर्ट्रेट का पता पा लेंगे बल्कि यह भी मालूम हो जाएगा कि पोर्ट्रेट किस प्रकार उसके पास पहुँचा."
"बॉस, गंगाराम का दो दिन से कोई पता नही चल पा रहा है. मेरा विचार है कि वह भी इस व्यक्ति के साथ सम्मिलित है."
"हो सकता है. अगर ऐसी बात होगी तो उसका भी इसी व्यक्ति से पता चल जाएगा. फिलहाल तुम अपने आदमियों को भरतपुर में इसकी खोज पर लगा दो. इसे हर हाल में जिंदा हालत में हमारी कस्टडी में होना चाहिए."
"ओ.के. बॉस. मैं अभी अपने आदमियों को इसके लिए तैयार करता हूँ. आप उसका फोटो मेरे पास भिजवा दें."
.............
हंसराज इस समय हल्के मेकअप में था. अर्थात घनी दाढ़ी मूंछें, जो वास्तव में नकली थीं, उसके चेहरे का परदा किए थीं. हालाँकि मोतीपुर में उसे इस बात का डर नही था कि कोई उसे पहचान सकता है. क्योंकि अपने निवास स्थान से वह काफी दूर था. फिर भी उसने एहतियात का दामन हाथ से नही छोड़ा था. लगभग दो घंटे पहले वह मोतीपुर के रेलवे स्टेशन पर उतरा था. और सोनिया भी उसके साथ थी. रेलवे स्टेशन के पास ही एक बूथ से उसने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया था. उसके बाद उसने सोनिया को अपने स्थाई निवास पर छोड़ा और अब स्वयं कंट्रोल रूम के पास स्थित एक शौपिंग सेंटर में टहलते हुए विभिन्न शो रूम्स देख रहा था. किंतु उसका ध्यान अपनी जेब में पड़े नीले लिफाफे पर था जिसे उसे कंट्रोल रूम के अन्दर पहुँचाना था.
..........continued
Wednesday, September 17, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 57
"हेलो आई जी स्पीकिंग."
"आशा है आप लोगों ने मेरे प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार किया होगा. मेरा मतलब पोर्ट्रेट के सौदे से है."
"सरकार ने तुम्हारी मांग पर विचार किया है. किंतु दस लाख डालर बहुत बड़ी रकम है."
"पूरे देश की इज्ज़त के बदले में यह कोई बड़ी रकम नही है. या तो सरकार यह रकम अदा करे, या पोर्ट्रेट से हाथ धो बैठे. इसके अलावा मुझे कुछ नही कहना है."
"किंतु स्थानीय होते हुए तुम डालर की मांग क्यों कर रहे हो? तुम्हें उसके बदले में रूपए भी तो दिए जा सकते हैं."
आई जी के इस वाक्य के बाद दूसरी ओर कुछ देर चुप्पी छाई रही. फिर कहा गया, "शायद तुम ने मेरे लहजे और हिन्दी बोलने से यह अनुमान लगाया है. तुम्हारे प्रश्न के उत्तर में मैं केवल इतना कहूँगा कि पोर्ट्रेट चोरी में मैं अकेला नही हूँ. अब यह बेकार की बातें छोड़ो और हाँ या न में मेरे प्रश्न का उत्तर दो."
आई जी ने एक ठंडी साँस लेकर कहा, "ठीक है. सरकार तुम्हें दस लाख डालर देने के लिए तैयार है. तुम बताओ, ये तुम्हें कहाँ पहुंचाए जाएँ?"
"इसके लिए कुछ देर बाद तुम्हारे पास एक नीला लिफाफा पहुंचेगा, जिस पर टू आई जी लिखा होगा. उस लिफाफे में इस बारे में पूरे निर्देश दिए गए हैं." उधर से रिसीवर रख दिया गया.
आई जी राघवेन्द्र ने भी रिसीवर रखा और इं. दिनेश की प्रतीक्षा करने लगा.
थोडी देर बाद इं. दिनेश ने वहां प्रवेश किया. उसके माथे पर गहरी सिलवटें थीं.
"क्या रहा?" आई जी ने पूछा.
"भरतपुर में मैं ने एक्सचेंज पर जो आदमी लगाए थे, उनके अनुसार यह काल वहां से नही की गई है. और अभी अभी मुझे पता चला है कि ये काल यहीं मोतीपुर में एक पब्लिक बूथ से की गई है." यह बूथ रेलवे स्टेशन के पास है."
"इसका मतलब यह हुआ कि वह व्यक्ति अभी अभी भरतपुर से चलकर मोतीपुर पहुँचा है. और आने के साथ ही उसने हमें फोन किया."
"मेरा विचार है कि अगर हम ये पता कर लें कि भरतपुर से कितने व्यक्ति यहाँ आए हैं तो उसका पता लगाया जा सकता है.*
"ऐसा सम्भव नही है. क्योंकि भरतपुर से सैंकडों व्यक्तियों ने यहाँ की यात्रा की होगी. और यह भी हमें नही मालुम कि उसने अपने असली नाम से यात्रा की है या नकली नाम से. अब तक वह मोतीपुर के किसी भी मुहल्ले में पहुँच चुका होगा."
"एक बात समझ में नही आई. अगर इस केस में कई लोगों का हाथ है तो यह व्यक्ति केवल अपने को क्यों प्रकट कर रहा है?"
"इसके कई कारण हो सकते हैं. हो सकता है. यह उस गिरोह का सरदार हो. या उसने अकेले ही यह काम किया हो. और अब गिरोह की बात बताकर हमें झांसा देना चाहता हो."
"मुझे तो पहली बात ही ठीक लगती है. क्योंकि जिस प्रकार पोर्ट्रेट की चोरी की गई है, वह किसी अकेले व्यक्ति का कार्य हो ही नही सकता."
आई जी ने इं. दिनेश की बात का कोई उत्तर नही दिया. वह किसी गहरी सोच में डूब गया था.
........continued
Friday, September 12, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 56
"अपनी विज्ञापन कंपनी का विज्ञापन के लिए. कल हमारी प्रतियोगिता का समाचार समाचार पत्रों में प्रकाशित होगा. जिससे बहुत से बिजनेसमैनों की दृष्टि में हमारी कंपनी आ जाएगी."
सेठ संतुष्ट होकर रकम लेने अन्दर चला गया. उसके जाने के बाद सोनिया ने कुछ बोलना चाहा, किंतु हंसराज ने उसे तुंरत चुप करा दिया. और बैग से मूवी कैमरा निकालने लगा.
उसने कैमरा निकलकर मेज़ पर रख दिया.
थोडी देर के बाद सेठ वापस आ गया और दस हज़ार रूपए निकलकर हंसराज के सामने रख दिए.
"ओ.के. तो मैं आपके विज्ञापन के लिए शूटिंग आरम्भ करता हूँ. सेठ जी, हमें थोडी देर के लिए अपने ऑफिस जाना होगा. क्योंकि कैमरे की रील वहीँ है और साथ साथ मिस कविता का मेकअप भी करना है."
"किंतु....," सेठ ने कुछ कहना चाहा किंतु हंसराज ने उसकी बात काट दी और बोला, "हम अपना मूवी कैमरा यहीं रख देते हैं. वापस आकर शूटिंग आरम्भ करेंगे."
"ठीक है." सेठ संतुष्ट हो गया. क्योंकि मूवी कैमरा हर हाल में दस हज़ार रुपयों से अधिक मूल्य का था. हंसराज और सोनिया वहां से उठ गए. दस हज़ार की रकम पहले ही हंसराज की जेब में पहुँच गई थी.
बाहर आकर दोनों ने टैक्सी पकड़ी और अपने होटल की ओर रवाना हो गए. लगभग एक घंटे के बाद वे दोनों अपनी असली शक्ल में अपने कमरे में थे.
"दस हज़ार बुरे नही हैं एक कैमरे के खोल के बदले. जिसकी कीमत केवल पचास रूपए थी कबाडी मार्केट में." हंसराज बोला.
"जब वह कैमरा खोलकर देखेगा तो अपना सर पीटेगा."
"नहीं, बल्कि अपनी दूकान के रसगुल्ले खाकर मीठी मीठी गालियाँ देगा हमें." दोनों ने एक कहकहा लगाया.
............continued
Wednesday, September 10, 2008
चार सौ बीस - एपिसोड 55
"आप बुकरात कंपनी के चेयरमैन हैं. बड़ी प्रसन्नता हुई आपसे मिलकर." सेठ ने उठकर हंसराज से हाथ मिलाया. उसके दोबारा बैठने के बाद हंसराज ने कहा.
"तो मैं यह कह रहा था कि हमारी कंपनी हर वर्ष लाटरी सिस्टम के द्वारा एक भाग्यशाली बिजनेसमैन का चुनाव करती है और केवल बीस हज़ार में उसका दस सेकंड का विज्ञापन टी. वी. पर प्रर्दशित करा देती है."
"केवल बीस हज़ार में?" सेठ ने विस्मय से ऑंखें फैलाईं.
"जी हाँ. आप तो जानते ही हैं कि दस सेकंड के विज्ञापन की फ़िल्म बनाने पर लगभग पचास हज़ार का खर्च होता है. और अस्सी हज़ार टी. वी. पर प्रर्दशित कराने के लिए देने होते हैं. इस तरह कुल लगभग एक लाख तीस हज़ार हो गए. हम जिस भाग्यशाली को चुनते हैं उसके ये सभी काम केवल बीस हज़ार में हो जाते हैं."
"किंतु इन बातों से मेरा क्या सम्बन्ध है?"
"सम्बन्ध ये है कि इस बार हमने लाटरी सिस्टम से जिस भाग्यशाली को चुना है वह आप हैं."
"क्या?" सेठ सोफे से उछ्ल पड़ा.
"जी हाँ. आपको केवल बीस हज़ार रूपए अदा करने होंगे. बाकी का सारा खर्च हम वहन करेंगे. और एक शानदार विज्ञापन टी. वी. पर आपकी मिठाइयों का प्रचार करेगा. आप पहले देसी हलवाई होंगे जिसका विज्ञापन टी. वी. पर आएगा."
"वेरी गुड. तो मुझे ये बीस हज़ार कब देने होंगे?" सेठ पूरी तरह अपने विज्ञापन के लिए तैयार हो गया था.
"जितनी जल्दी हो सके. यदि आज आप हमें रूपए दे दें तो आज ही से आपके विज्ञापन कि शूटिंग आरम्भ हो जाएगी."
"इस समय तो मैं दस हज़ार दे सकता हूँ."
"ठीक है. आप फिलहाल इतने दे दीजिये. मैं शूटिंग आरम्भ कर देता हूँ."
"शूटिंग कब होगी?"
"यहीं पर. आपके घर में. मिस कविता इसकी मॉडलिंग करेंगी. मैं इसी लिए मूवी कैमरा साथ लाया था." हंसराज ने बैग का मुंह खोल दिया और कैमरा बाहर झाँकने लगा.
सेठ रकम लाने के लिए उठने लगा. किंतु फिर उसके मन में शक का कीड़ा कुलबुलाया.
...........continued