"किंतु आप केवल बीस हज़ार में विज्ञापन तैयार करके अपना घाटा क्यों सह रहे हैं?"
"अपनी विज्ञापन कंपनी का विज्ञापन के लिए. कल हमारी प्रतियोगिता का समाचार समाचार पत्रों में प्रकाशित होगा. जिससे बहुत से बिजनेसमैनों की दृष्टि में हमारी कंपनी आ जाएगी."
सेठ संतुष्ट होकर रकम लेने अन्दर चला गया. उसके जाने के बाद सोनिया ने कुछ बोलना चाहा, किंतु हंसराज ने उसे तुंरत चुप करा दिया. और बैग से मूवी कैमरा निकालने लगा.
उसने कैमरा निकलकर मेज़ पर रख दिया.
थोडी देर के बाद सेठ वापस आ गया और दस हज़ार रूपए निकलकर हंसराज के सामने रख दिए.
"ओ.के. तो मैं आपके विज्ञापन के लिए शूटिंग आरम्भ करता हूँ. सेठ जी, हमें थोडी देर के लिए अपने ऑफिस जाना होगा. क्योंकि कैमरे की रील वहीँ है और साथ साथ मिस कविता का मेकअप भी करना है."
"किंतु....," सेठ ने कुछ कहना चाहा किंतु हंसराज ने उसकी बात काट दी और बोला, "हम अपना मूवी कैमरा यहीं रख देते हैं. वापस आकर शूटिंग आरम्भ करेंगे."
"ठीक है." सेठ संतुष्ट हो गया. क्योंकि मूवी कैमरा हर हाल में दस हज़ार रुपयों से अधिक मूल्य का था. हंसराज और सोनिया वहां से उठ गए. दस हज़ार की रकम पहले ही हंसराज की जेब में पहुँच गई थी.
बाहर आकर दोनों ने टैक्सी पकड़ी और अपने होटल की ओर रवाना हो गए. लगभग एक घंटे के बाद वे दोनों अपनी असली शक्ल में अपने कमरे में थे.
"दस हज़ार बुरे नही हैं एक कैमरे के खोल के बदले. जिसकी कीमत केवल पचास रूपए थी कबाडी मार्केट में." हंसराज बोला.
"जब वह कैमरा खोलकर देखेगा तो अपना सर पीटेगा."
"नहीं, बल्कि अपनी दूकान के रसगुल्ले खाकर मीठी मीठी गालियाँ देगा हमें." दोनों ने एक कहकहा लगाया.
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उपन्यास - सूरैन का हीरो और यूनिवर्स का किंग
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उपन्यास - सूरैन का हीरो और यूनिवर्स का किंग उस लंबी कहानी की अंतिम कड़ी है
जिसके पूर्व हिस्से आप उपन्यासों - सूरैन का हीरो और
शादी का कीड़ा, सूरैन का हीरो...
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