इं. दिनेश ने सिगरेट समाप्त करने के बाद रेडियम डायेल की घड़ी पर दृष्टि की. आठ बजकर दस मिनट हो गए थे. उसने मुंह खोलकर एक जम्हाई ली और बडबडाया, "कहाँ मर गया साला. लगता है डर गया. सपने में आने लगी होंगी पुलिस की हथकडियाँ."
उसी समय पहाडियों की ओट से एक व्यक्ति बाहर निकला जिसने अपने गले में लाल रूमाल लपेट रखा था. वह धीरे धीरे इं.दिनेश की ओर बढ़ने लगा. इं.दिनेश भी उसे देखकर सावधान होकर बैठ गया.
"पोर्ट्रेट कहाँ है?" पास आने पर इं.दिनेश ने उससे पूछा, क्योंकि वह व्यक्ति खाली हाथ था.
"हमें नहीं मालूम." आगंतुक ने उत्तर दिया.
"कमाल है. तुम्हें नहीं मालूम तो क्या इं पहाडियों को मालूम होगा! किस बात का सौदा करने के लिए मुझे यहाँ बुलाया गया है?" इं.दिनेश ने अपना बायाँ हाथ हिलाते हुए क्रोधित स्वर में कहा. आगंतुक को नहीं मालूम था कि इस बीच इं.दिनेश के हाथ की अंगूठी के कैमरे में उसकी तस्वीर कैद हो चुकी है. "मैंने सच कहा है कि मुझे पोर्ट्रेट के बारे में कुछ नहीं मालूम. मैं भी उसी व्यक्ति की प्रतीक्षा में था जिसे अब तक आ जाना चाहिए था. मैंने अभी अभी मोबाइल पर अपने बॉस से बात की है. उधर से आदेश आया है कि यदि पोर्ट्रेट नहीं मिला तो दस लाख डालर इं.दिनेश से लेकर आ जाओ."
"ओह! मैं समझा." इं.दिनेश ने सर हिलाया, "तो यह तुम्हारी योजना थी कि पोर्ट्रेट भी तुम रख लोगे और डालर भी हासिल करोगे. लेकिन यह सम्भव नही है." कहते हुए इंसपेक्टर ने रिवाल्वर निकाल लिया.
"रिवाल्वर चलाने से पहले तुम यह जान लो कि इस समय तुम्हारे ऊपर तीन राइफलें तनी हैं जो किसी भी समय तुम्हारे परखच्चे उदा सकती हैं. नमूना देख सकते हो." कहते हुए उस व्यक्ति ने अपनी टॉर्च से कोई संकेत किया और वहां के वातावरण में राइफलों की तड़तड़ाहट गूँज उठी.
"अब फ़ैसला तुम्हारे ऊपर निर्भर है." उसने कहा. इं.दिनेश ने यही उचित समझा कि रिवाल्वर दोबारा अपनी जेब में रख ले.
"ठीक है. तुम डालरों का सूटकेस ले जाओ. किंतु याद रखना कि अधिक देर क़ानून के हाथों नहीं बच सकोगे." इं.दिनेश ने उसे घूरते हुए कहा.
"क़ानून से तो हमारी आंख मिचौली चलती है. तुम सूटकेस मेरे सामने रख दो ताकि हम अपना इत्मीनान कर सकें."
"तुम स्वयम उठा लो. जीप की पिछली सीट पर रखा है."
वह व्यक्ति आगे बढ़ा और जीप से सूटकेस निकाल लाया.
1 comment:
क़ानून से तो हमारी आंख मिचौली चलती है
" ha ha ha what a daring remark. waiting to read next..."
regards
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