Sunday, September 21, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 58

गंगाराम अपने हाथ में पकड़े चित्र को गौर से देख रहा था. यह चित्र उसी चित्रकार ने तैयार करके दिया था जिसने इससे पहले पोर्ट्रेट की नक़ल तैयार की थी.
"तो यह है वह व्यक्ति, जिसके पास इस समय असली पोर्ट्रेट है." वह बड़बड़ाया. वास्तव में उसके हाथ में हंसराज का चित्र था जिसे चित्रकार ने अपनी स्मृति के आधार पर बनाया था.
उसने मनोहरश्याम से संपर्क स्थापित किया और उधर से जवाब मिलने पर बोला, "अभी तुम्हारे पास एक व्यक्ति का फोटो पहुंचेगा. तुम्हें उस व्यक्ति को भरतपुर में तलाश करना है."
"कौन है यह व्यक्ति?" मनोहरश्याम ने पूछा.
"संभवतः यह वही व्यक्ति है जिसके पास इस समय असली पोर्ट्रेट है. यदि यह हमारी गिरफ्त में आ जाए तो न केवल हम पोर्ट्रेट का पता पा लेंगे बल्कि यह भी मालूम हो जाएगा कि पोर्ट्रेट किस प्रकार उसके पास पहुँचा."
"बॉस, गंगाराम का दो दिन से कोई पता नही चल पा रहा है. मेरा विचार है कि वह भी इस व्यक्ति के साथ सम्मिलित है."
"हो सकता है. अगर ऐसी बात होगी तो उसका भी इसी व्यक्ति से पता चल जाएगा. फिलहाल तुम अपने आदमियों को भरतपुर में इसकी खोज पर लगा दो. इसे हर हाल में जिंदा हालत में हमारी कस्टडी में होना चाहिए."
"ओ.के. बॉस. मैं अभी अपने आदमियों को इसके लिए तैयार करता हूँ. आप उसका फोटो मेरे पास भिजवा दें."
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हंसराज इस समय हल्के मेकअप में था. अर्थात घनी दाढ़ी मूंछें, जो वास्तव में नकली थीं, उसके चेहरे का परदा किए थीं. हालाँकि मोतीपुर में उसे इस बात का डर नही था कि कोई उसे पहचान सकता है. क्योंकि अपने निवास स्थान से वह काफी दूर था. फिर भी उसने एहतियात का दामन हाथ से नही छोड़ा था. लगभग दो घंटे पहले वह मोतीपुर के रेलवे स्टेशन पर उतरा था. और सोनिया भी उसके साथ थी. रेलवे स्टेशन के पास ही एक बूथ से उसने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया था. उसके बाद उसने सोनिया को अपने स्थाई निवास पर छोड़ा और अब स्वयं कंट्रोल रूम के पास स्थित एक शौपिंग सेंटर में टहलते हुए विभिन्न शो रूम्स देख रहा था. किंतु उसका ध्यान अपनी जेब में पड़े नीले लिफाफे पर था जिसे उसे कंट्रोल रूम के अन्दर पहुँचाना था.
..........continued

1 comment:

Udan Tashtari said...

सस्पेन्स है भई...इन्तजार लगवा दिया अगली कड़ी का. अच्छा लेखन!!