Tuesday, October 7, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 64

उसने अपने आपको पूरी तरह झाड़ियों में छुपा लिया था. थोडी देर बाद जीप की हेडलाईट दिखाई देने लगी. वह इसी रास्ते पर आ रही थी. हंसराज ने गौर से जीप में बैठे व्यक्तियों को देखने का प्रयास किया किंतु हेडलाईट की तेज़ रौशनी और जंगल के अंधेरे ने उसे कुछ देखने नही दिया.
जीप उसके पास से गुज़रती हुई आगे बढ़ी. और फिर एक झटके से रूक गई. क्योंकि सामने हंसराज द्वारा काटी गई डाल ने उसका रास्ता रोक दिया था."ओह, यह डाल कहाँ से बीच में आ गई." जीप में बैठा व्यक्ति, जो वास्तव में इं.दिनेश था, बडबडाया. वह जीप से नीचे उतरकर डाल के पास पहुँचा और उसे खींचकर किनारे लगाने की कोशिश करने लगा.
हंसराज तेज़ी से अपने स्थान से उठा और जीप की और झुक कर जाने लगा. इं.दिनेश डाल हटाने में तल्लीन था. इसके अलावा जीप की घरघराहट में हंसराज के जीप तक पहुँचने की आहट छुप गई थी.वह जीप तक पहुँचा और फिर उसका निरीक्षण करने के बाद उसमें चढ़ गया. नीले रंग का एकमात्र सूटकेस वहां रखा हुआ था. हंसराज ने उसे थोड़ा सा खोलकर देखा. पेन्सिल टॉर्च की रौशनी में नोटों की गड्डियां दिखाई पड़ रही थीं. उसने दोबारा उसे बंद कर दिया. अब वह उसे लेकर नीचे उतर रहा था.इं.दिनेश डाल को हटाने में तल्लीन था और साथ साथ बडबडाता भी जा रहा था. इस बड़बड़ाहट में गालियों का भी समावेश था. हंसराज अपने स्थान पर वापस आया और सूटकेस खोलकर सारे नोट वहीँ पलट दिए. अब उसने अपना सूटकेस निकाला और उसे खोलकर उसमें से लेओनार्दो का पोर्ट्रेट निकाला. जीप से निकाले गए खाली हो चुके सूटकेस में उसने यह पोर्ट्रेट रखकर उसे बंद कर दिया.
अब वह दोबारा उस सूटकेस को लेकर जीप की ओर जा रहा था. क्योंकि वह ठगी के भी सौदे में ईमानदारी पर विश्वास रखता था. चूंकि उसने पोर्ट्रेट की कीमत हासिल कर ली थी, अतः पोर्ट्रेट की वापसी उसका फ़र्ज़ थी.
जीप में सूटकेस वापस रखकर वह पलट आया. इं.दिनेश को आभास तक न हो सका कि उसकी जीप में किस प्रकार का खेल हो चुका है. वह पसीने से तर डाल को खींचने में लगा हुआ था, जो अच्छी खासी दूर हट चुकी थी.हंसराज ने अब अपने खली सूटकेस में झाडियों में पड़े डालरों को रखना आरम्भ कर दिया. कुछ ही देर में सारे डालर उसके सूटकेस में शिफ्ट हो चुके थे.
अब तक इं.दिनेश डाल को सड़क पर से हटाने में कामयाब हो चुका था.उसने रूमाल से अपना पसीना पोंछा और जीप तक वापस आया. अब वह ड्राइविंग सीट पर बैठ चुका था.फिर कुछ सोचकर उसने टॉर्च निकाली और पीछे की सीट पर उसका प्रकाश डाला. वहां सूटकेस अपने स्थान पर मौजूद था. उसने चैन की साँस ली और अपनी जीप आगे बढ़ा दी.
उसके आगे बढ़ते ही हंसराज तेज़ी से एक ओर को बढ़ गया. उसके एक हाथ में बैग तथा दूसरे हाथ में सूटकेस था. इससे पहले की इं.दिनेश को अपने सूटकेस की असलिअत मालूम होती, वह जल्द से जल्द यहाँ से दूर निकल जाना चाहता था.

1 comment:

seema gupta said...

जीप में सूटकेस वापस रखकर वह पलट आया. इं.दिनेश को आभास तक न हो सका कि उसकी जीप में किस प्रकार का खेल हो चुका है.
' wah kmal ke klakaree, very interesting...'

regards