"आपने भारत की जानी मानी विज्ञापन कंपनी 'बुकरात कंपनी' का नाम तो अवश्य सुना होगा. मैं ही उसका चेयरमैन हूँ."
"आप बुकरात कंपनी के चेयरमैन हैं. बड़ी प्रसन्नता हुई आपसे मिलकर." सेठ ने उठकर हंसराज से हाथ मिलाया. उसके दोबारा बैठने के बाद हंसराज ने कहा.
"तो मैं यह कह रहा था कि हमारी कंपनी हर वर्ष लाटरी सिस्टम के द्वारा एक भाग्यशाली बिजनेसमैन का चुनाव करती है और केवल बीस हज़ार में उसका दस सेकंड का विज्ञापन टी. वी. पर प्रर्दशित करा देती है."
"केवल बीस हज़ार में?" सेठ ने विस्मय से ऑंखें फैलाईं.
"जी हाँ. आप तो जानते ही हैं कि दस सेकंड के विज्ञापन की फ़िल्म बनाने पर लगभग पचास हज़ार का खर्च होता है. और अस्सी हज़ार टी. वी. पर प्रर्दशित कराने के लिए देने होते हैं. इस तरह कुल लगभग एक लाख तीस हज़ार हो गए. हम जिस भाग्यशाली को चुनते हैं उसके ये सभी काम केवल बीस हज़ार में हो जाते हैं."
"किंतु इन बातों से मेरा क्या सम्बन्ध है?"
"सम्बन्ध ये है कि इस बार हमने लाटरी सिस्टम से जिस भाग्यशाली को चुना है वह आप हैं."
"क्या?" सेठ सोफे से उछ्ल पड़ा.
"जी हाँ. आपको केवल बीस हज़ार रूपए अदा करने होंगे. बाकी का सारा खर्च हम वहन करेंगे. और एक शानदार विज्ञापन टी. वी. पर आपकी मिठाइयों का प्रचार करेगा. आप पहले देसी हलवाई होंगे जिसका विज्ञापन टी. वी. पर आएगा."
"वेरी गुड. तो मुझे ये बीस हज़ार कब देने होंगे?" सेठ पूरी तरह अपने विज्ञापन के लिए तैयार हो गया था.
"जितनी जल्दी हो सके. यदि आज आप हमें रूपए दे दें तो आज ही से आपके विज्ञापन कि शूटिंग आरम्भ हो जाएगी."
"इस समय तो मैं दस हज़ार दे सकता हूँ."
"ठीक है. आप फिलहाल इतने दे दीजिये. मैं शूटिंग आरम्भ कर देता हूँ."
"शूटिंग कब होगी?"
"यहीं पर. आपके घर में. मिस कविता इसकी मॉडलिंग करेंगी. मैं इसी लिए मूवी कैमरा साथ लाया था." हंसराज ने बैग का मुंह खोल दिया और कैमरा बाहर झाँकने लगा.
सेठ रकम लाने के लिए उठने लगा. किंतु फिर उसके मन में शक का कीड़ा कुलबुलाया.
...........continued
उपन्यास - सूरैन का हीरो और यूनिवर्स का किंग
-
उपन्यास - सूरैन का हीरो और यूनिवर्स का किंग उस लंबी कहानी की अंतिम कड़ी है
जिसके पूर्व हिस्से आप उपन्यासों - सूरैन का हीरो और
शादी का कीड़ा, सूरैन का हीरो...
No comments:
Post a Comment