फिर उसे इसका मौका मिल गया। एक लगभग बारह वर्ष का लड़का फटे कपडों में आ खड़ा हुआ. यह एक भिखारी था. हंसराज को तरकीब समझ में आ गई. उसने अपनी जेब में हाथ डालकर पाँच पाँच के दो नोट निकाले और लड़के को दिखाता हुआ बोला,"देखो, ये दोनों नोट तुम्हारे हो जायेंगे, अगर तुम मेरा एक छोटा सा काम कर दो. बोलो तैयार हो?"
लड़के ने सहमती में सर हिलाया. हंसराज ने जेब से नीला लिफाफा निकला और पाँच के एक नोट के साथ लड़के को देता हुआ बोला, "ये लिफाफा सामने पुलिस स्टेशन में पहुँचा दो. वापसी पर पाँच रूपए और मिलेंगे."
लड़के ने लिफाफा लिया और पुलिस कंट्रोल रूम की ओर बढ़ गया. हंसराज ने उस पर तब तक दृष्टि रखी जब तक वह कंट्रोल रूम के प्रांगण में नहीं पहुँच गया. फिर वह शौपिंग काम्प्लेक्स के अन्दर घुस गया और एक बाथरूम में पहुंचकर अपना हुलिया बदलने लगा.
कुछ देर बाद वह अपनी असली शक्ल में टैक्सी में बैठकर घर की ओर जा रहा था.
............
आई जी राघवेन्द्र के कमरे में इं. दिनेश दाखिल हुआ."एक नीला लिफाफा हमारे पास आया है जिस पर टू आई जी लिखा हुआ है और यह लिफाफा एक...."
"भिखारी के हाथों तुम्हारे पास पहुँचा है। और भिखारी द्वारा बताए गए हुलिए की तुमने आसपास छानबीन कराई किंतु वह व्यक्ति कहीं नहीं मिला जिसने भिखारी को लिफाफा दिया था।" आई.जी. राघवेन्द्र ने इं. दिनेश की बात पूरी कर दी।
"जी हाँ, किंतु..." आश्चर्य से इं. दिनेश ने आई जी की और देखते हुए सहमति में सर हिलाया.
"आश्चर्य मत करो। ऐसे मामलों में आमतौर पर यही होता है. किसी भी अपराधी का सबसे सुरक्षित प्लान. लाओ वह लिफाफा मुझे दो. मैं पढ़ना चाहता हूँ."
इं. दिनेश ने लिफाफा जेब से निकाला और आई.जी. को देते हुए बोला, "क्या मैं लिफाफे पर उँगलियों के निशान तलाशने का प्रयत्न करुँ?"
"सरकार को ब्लेकमेल करने वाला अपराधी यह गलती नही कर सकता. वैसे तुम कोशिश कर सकते हो." आई जी ने लिफाफे में रखा कागज़ निकालकर लिफाफा वापस इं. दिनेश की और बढ़ा दिया.
अब वह कागज़ पढ़ रहा था. जबकि इं. दिनेश लिफाफे को उलट पलट कर देख रहा था.
उपन्यास - सूरैन का हीरो और यूनिवर्स का किंग
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उपन्यास - सूरैन का हीरो और यूनिवर्स का किंग उस लंबी कहानी की अंतिम कड़ी है
जिसके पूर्व हिस्से आप उपन्यासों - सूरैन का हीरो और
शादी का कीड़ा, सूरैन का हीरो...
3 comments:
जारी रहिये!!
जारी रहिये!!
'oh, what next????"
Regards
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