Monday, November 3, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 72

"वाह वाह. क्या शानदार बात बताई. " उसने कहकहा लगाया, "बहुत मज़ा आता है गटर में. एक बार मैं गिर चुका हूँ. हर ओर खुशबू ही खुशबू. लगता है जैसे स्वर्ग में पहुँच गए. लेकिन वहां बोतल नही मिल पाती."
"कोई बात नहीं. बोतल तो तुम्हें असली स्वर्ग में भी नही मिलेगी."

"ऐसी बात है." वह तैश में आकर बोला, "फिर तो मैं स्वर्ग बिल्कुल नही जाऊँगा. मैं तो नर्क जाऊँगा. वहां तो बोतल मिलेगी?"
"जैसी आपकी मर्ज़ी. पाँच रुपये निकालो ताकि मैं आगे बढूँ."

"निकाल रहा हूँ. ऐसी भी क्या जल्दी है. आओ एक पैग हो जाए. मैं तो यारों का यार हूँ." उसने मुसीबतचंद का हाथ पकड़कर खींचा.

"नहीं. शराब मैं ने सौ साल पहले ही छोड़ दी थी. अब मेरी फीस पाँच रुपये निकालो."
"दे रहा हूँ. पाँच क्या मैं तुम्हें पाँच लाख दे रहा हूँ." उसने अपनी जेब में हाथ डाला और एक लॉटरी का टिकट निकालकर मुसीबतचंद की ओर बढ़ा दिया. जिसका पहला इनाम पूरे पाँच लाख का था."
"ये क्या दे रहो हो. चलो ठीक है आज मैं भी अपना भाग्य देख लूँ." उसने टिकट जेब में रख लिया और आगे बढ़ गया. शराबी भी झूमता हुआ आगे निकल गया.

कुछ दूर जाने के बाद अचानक मुसीबतचंद को कुछ ध्यान आया और वह जेब से टिकट निकालकर गौर से देखने लगा.
"धत तेरे की. ये तो छः महीने पुराना टिकट है." उसने टिकट वहीँ फाड़कर फेंक दिया.

थोडी दूर और आगे बढ़ने पर उसे सामने से एक और व्यक्ति आता दिखाई दिया. जिसने एक हाथ में सूटकेस पकड़ रखा था तथा दूसरे कंधे से बैग लटका रखा था."
"केवल पाँच रुपये में अपने भविष्य के बारे में सब कुछ जान लो." उसे देखते ही मुसीबतचंद ने आवाज़ लगाई. जब उस व्यक्ति ने कोई ध्यान नही दिया तो मुसीबतचंद उसके पास जाकर बोला, "भाई साहब, मैं आपका फ्यूचर बहुत ब्राईट देख रहा हूँ."
"ज़रूर देख रहे होगे. क्योंकि मैं स्वयें अपने फ्यूचर को अच्छी तरह जानता हूँ."

"आप कैसे जानते हैं?" मुसीबतचंद ने चौंक का पूछा."इसलिए क्योंकि मैं स्वयें ज्योतिषी हूँ. मैं ने यूरोप की प्रसिद्ध हस्तियों के भाग्य में लिखे को बताया है. कहो तो तुम्हारा भी भूत, भविष्य, वर्तमान सब कुछ बता दूँ."
"अपने बारे में तो मुझे भी जानना है. बहुत दिनों से मैं इस काम के लिए किसी को ढूँढ रहा था." मुसीबतचंद ने फ़ौरन अपना हाथ उसकी ओर बढ़ा दिया. वह कुछ देर उसका हाथ देखता रहा फ़िर बोला, "तो तुम्हारा नाम मुसीबतचंद है. तुम गाँव से आये हो. यहाँ पर हंसराज नाम के एक व्यक्ति के घर में रहे. जो बाद में तुम्हें छोड़कर कहीं चला गया."

मुसीबतचंद यह बातें सुनकर भौंचक्का हो गया, "इतना तो मैं भी किसी के बारे में बता नही पाता." वह बोला. उसे नही मालूम था कि उसके सामने मेकअप में हंसराज ही खड़ा है.

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