Tuesday, October 14, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 67

"अच्छा तो अब मैं चलता हूँ." मुसीबतचंद उठ खड़ा हुआ. वेटर के कानों में मुसीबतचंद के शब्द नहीं पड़ सके. क्योंकि उसकी ऑंखें बंद थीं और वह भविष्य के रंगीन सपनों में खो गया था.
"अब मैं मालिक हो जाऊंगा. मैं मालिक हो गया. मैं मालिक हूँ." वह बडबडा रहा था. उसे नहीं मालुम था कि ढाबे का मालिक एक ग्राहक की शिकायत पर उसके पास आ खड़ा हुआ है. उस ग्राहक के बुलावे पर वेटर ने ध्यान नही दिया था.

"चटाख!" एक थप्पड़ वेटर के मुंह पर पड़ा और वह सपनों कि दुनिया से बाहर आ गया.

"क्यों बे," मालिक ने डपटा, "यहाँ खड़े खड़े सोने के लिए दो सौ रुपिया महीना मिलता है. चल उधर जा के पानी दे. हरामखोर कहीं का."
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इं.दिनेश पहाड़ियों पर पहुँच चुका था और अब उस अज्ञात व्यक्ति कि प्रतीक्षा कर रहा था जिससे उसे डालरों और पोर्ट्रेट की अदला बदली करनी थी.उसने स्टेअरिंग व्हील से हाथ हटाये और जीप की सीट से पीठ टिका ली. फिर ऑंखें बंद करके दो तीन लम्बी सांसें लीं और जेब में हाथ डालकर सिगरेट टटोलने लगा.
सिगरेट सुलगाने के बाद उसने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई, किंतु उस अज्ञात व्यक्ति का कहीं पता नही था.

उधर गंगाराम के भेजे व्यक्ति भी इं.दिनेश को जीप में अकेला देख रहे थे. ये संख्या में चार थे जिनमें सौम्य और रोशन सम्मिलित थे. ये लोग भी बेताबी से उस अज्ञात लुटेरे की प्रतीक्षा कर रहे थे जिसने उनके पास से पोर्ट्रेट इस प्रकार उड़ाया था कि उन्हें ख़बर भी न हो सकी और अब इं.दिनेश से सौदा करने वाला था.

"यार, काफी देर हो गई. अब तक वह आया नहीं." रोशन सौम्य के कान में फुसफुसाया.

"हाँ. पता नहीं क्या बात हो गई. उसे तो पहले से यहाँ मौजूद रहना चाहिए था." सौम्य भी धीरे से बोला.
"कहीं ऐसा तो नहीं कि उसे हमारी उपस्थिति का पता चल गया हो?"

"ऐसा कैसे हो सकता है?"

"मेरा विचार है कि हममें से कोई व्यक्ति उससे मिला हुआ है. वरना पोर्ट्रेट उसके पास कैसे पहुँच गया. उसी ने इस बात की भी सूचना दे दी होगी."

"थोडी देर और प्रतीक्षा करते हैं. फिर कोई दूसरा एक्शन लेंगे." सौम्य बोला. फिर दोनों मौन हो गए

1 comment:

seema gupta said...

चटाख!" एक थप्पड़ वेटर के मुंह पर पड़ा और वह सपनों कि दुनिया से बाहर आ गया.
' ha ha ha sapno se bahar aane ya lane ka yhee ek treeka hai'
couldnt read yesterday, read today..
regards