Wednesday, September 17, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 57

आई. जी. राघवेन्द्र ने इं. दिनेश के हाथ से रिसीवर लिया. दूसरी और वही था जिसने अपने पास पोर्ट्रेट होने का दावा किया था. उसने इं. दिनेश से पोर्ट्रेट के सम्बन्ध में किसी महत्वपूर्ण अफसर से बात कराने के लिए कहा था. अतः इं. दिनेश ने आई जी को बुलाया था.

"हेलो आई जी स्पीकिंग."
"आशा है आप लोगों ने मेरे प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार किया होगा. मेरा मतलब पोर्ट्रेट के सौदे से है."
"सरकार ने तुम्हारी मांग पर विचार किया है. किंतु दस लाख डालर बहुत बड़ी रकम है."
"पूरे देश की इज्ज़त के बदले में यह कोई बड़ी रकम नही है. या तो सरकार यह रकम अदा करे, या पोर्ट्रेट से हाथ धो बैठे. इसके अलावा मुझे कुछ नही कहना है."
"किंतु स्थानीय होते हुए तुम डालर की मांग क्यों कर रहे हो? तुम्हें उसके बदले में रूपए भी तो दिए जा सकते हैं."
आई जी के इस वाक्य के बाद दूसरी ओर कुछ देर चुप्पी छाई रही. फिर कहा गया, "शायद तुम ने मेरे लहजे और हिन्दी बोलने से यह अनुमान लगाया है. तुम्हारे प्रश्न के उत्तर में मैं केवल इतना कहूँगा कि पोर्ट्रेट चोरी में मैं अकेला नही हूँ. अब यह बेकार की बातें छोड़ो और हाँ या न में मेरे प्रश्न का उत्तर दो."
आई जी ने एक ठंडी साँस लेकर कहा, "ठीक है. सरकार तुम्हें दस लाख डालर देने के लिए तैयार है. तुम बताओ, ये तुम्हें कहाँ पहुंचाए जाएँ?"
"इसके लिए कुछ देर बाद तुम्हारे पास एक नीला लिफाफा पहुंचेगा, जिस पर टू आई जी लिखा होगा. उस लिफाफे में इस बारे में पूरे निर्देश दिए गए हैं." उधर से रिसीवर रख दिया गया.
आई जी राघवेन्द्र ने भी रिसीवर रखा और इं. दिनेश की प्रतीक्षा करने लगा.
थोडी देर बाद इं. दिनेश ने वहां प्रवेश किया. उसके माथे पर गहरी सिलवटें थीं.
"क्या रहा?" आई जी ने पूछा.
"भरतपुर में मैं ने एक्सचेंज पर जो आदमी लगाए थे, उनके अनुसार यह काल वहां से नही की गई है. और अभी अभी मुझे पता चला है कि ये काल यहीं मोतीपुर में एक पब्लिक बूथ से की गई है." यह बूथ रेलवे स्टेशन के पास है."
"इसका मतलब यह हुआ कि वह व्यक्ति अभी अभी भरतपुर से चलकर मोतीपुर पहुँचा है. और आने के साथ ही उसने हमें फोन किया."
"मेरा विचार है कि अगर हम ये पता कर लें कि भरतपुर से कितने व्यक्ति यहाँ आए हैं तो उसका पता लगाया जा सकता है.*
"ऐसा सम्भव नही है. क्योंकि भरतपुर से सैंकडों व्यक्तियों ने यहाँ की यात्रा की होगी. और यह भी हमें नही मालुम कि उसने अपने असली नाम से यात्रा की है या नकली नाम से. अब तक वह मोतीपुर के किसी भी मुहल्ले में पहुँच चुका होगा."
"एक बात समझ में नही आई. अगर इस केस में कई लोगों का हाथ है तो यह व्यक्ति केवल अपने को क्यों प्रकट कर रहा है?"
"इसके कई कारण हो सकते हैं. हो सकता है. यह उस गिरोह का सरदार हो. या उसने अकेले ही यह काम किया हो. और अब गिरोह की बात बताकर हमें झांसा देना चाहता हो."
"मुझे तो पहली बात ही ठीक लगती है. क्योंकि जिस प्रकार पोर्ट्रेट की चोरी की गई है, वह किसी अकेले व्यक्ति का कार्य हो ही नही सकता."
आई जी ने इं. दिनेश की बात का कोई उत्तर नही दिया. वह किसी गहरी सोच में डूब गया था.
........continued

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