Friday, October 3, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 62

"तो वह भरतपुर से वापस आ गया है. और आज पहाडियों पर पोर्ट्रेट और डालरों का आदान प्रदान होगा." गंगाराम ने कहा. उसके सामने वही अज्ञात इन्फोर्मेर बदले हुए हुलिए में बैठा था.
"हाँ. यदि तुम उसे वहां पकड़ सको तो न केवल पोर्ट्रेट हासिल हो जाएगा बल्कि यह भी मालुम हो जाएगा की पोर्ट्रेट उसके पास किस प्रकार पहुँचा."
"तुम सही कहते हो. मैं उसे पकड़ने के लिए पहाडियों पर अपने आदमी लगा देता हूँ." गंगाराम ने फोन की ओर हाथ बढाया.

"किंतु इसमें बहुत सावधानी की आवश्यकता है. ज़रा सी भी चूक न केवल आर.डी.एक्स. से भरे सूटकेस में पोर्ट्रेट को उड़ा सकती है बल्कि वहां खड़े हमारे आदमी भी घायल हो सकते हैं."
"हम उसका हाथ रिमोट तक पहुँचने से पहले ही उसे दबोच लेंगे. इस काम में रोशन और सौम्य विशेषज्ञ हैं. उनके अलावा दो अन्य व्यक्ति भी वहां भेज दिए जाएँगे. पुलिस या किसी अन्य संभावित खतरों से निपटने के लिए. वैसे तुम्हारा आई जी काफी तेज़ दिमाग का है. उसने भी कोई ठोस योजना सोच रखी होगी उसे पकड़ने के लिए."
"यदि कोई ऐसी योजना होगी भी तो मुझे ज्ञात नही है."

"मेरा विचार है कि पोर्ट्रेट हासिल करने से पहले वह कोई खतरा नही उठाएगा. जबकि हम लोग उस व्यक्ति को पहले ही पकड़ने की ताक में हैं. इस तरह टकराव की संभावना बहुत कम है." गंगाराम कह रहा था, "इसके अलावा पहचान के लिए हमारे पास उस व्यक्ति का चित्र भी है. जिसकी एक एक कापी हम सौम्य वगैरा को दे देंगे."
गंगाराम ने रिसीवर उठाया और मनोहरश्याम को फोन पर ज़रूरी निर्देश देने लगा. लगभग आधे घंटे की बातचीत के बाद उसने रिसीवर रख दिया. फोन पर बात करते समय उसकी आवाज़ पूरी तरह बदल जाती थी.

"अब तुम्हें जल्दी करना चाहिए. क्योंकि पाँच बज चुके हैं." अज्ञात इन्फोर्मेर ने अपनी घड़ी देखते हुए कहा.
"चिंता मत करो. छह बजे से पहले हमारे आदमी पहाड़ी पर होंगे. जबकि सौदे का टाइम आठ बजे का है. अब तुम जाओ वरना वहां तुम्हारी लम्बी अनुपस्थिति शक का कारण बन सकती है."

"फ़िक्र न करो. वहां कोई मुझ पर संदेह नही कर सकता. वैसे अब मैं चलता हूँ." वह उठ खड़ा हुआ.

..............continued

1 comment:

seema gupta said...

'interesting... what next????

Regards