उन्हें सेठ धीरुमल का मकान तलाश करने में कोई कठिनाई नही हुई. क्योंकि धीरुमल भरतपुर का प्रसिद्ध हलवाई था. हंसराज ने पहले से पता कर लिया था कि सेठ इस समय घर पर है.
सेठ धीरुमल का मकान शानदार हवेलीनुमा था. हंसराज ने घंटी पर उंगली रख दी. थोडी देर बाद एक नौकर गेट के पास आया.
"मैं सेठ धीरुमल से मिलना चाहता हूँ." हंसराज ने उसे संबोधित किया.
"आप कहाँ से आये हैं?" नौकर ने पूछा.
"मैं एक विज्ञापन एजेन्सी से आया हूँ और सेठ जी से ज़रूरी काम के सम्बन्ध में मिलना चाहता हूँ."
नौकर ने एक उचटती नज़र सोनिया की ओर डाली और अन्दर चला गया. लगभग दस पन्द्रह मिनट बीतने के बाद वह वापस आया.
"आइये. सेठ जी आपसे मिलने के लिए तैयार हैं." नौकर ने कहा और गेट खोल दिया. थोडी देर बाद हंसराज ओर सोनिया सेठ के ड्राइंग रूम में थे. हंसराज ने अपना बैग सामने पड़ी टेबिल पर रख दिया.
नौकर उन्हें बिठाकर वापस चला गया ओर वे लोग सेठ की प्रतीक्षा करने लगे.
थोडी देर बाद सेठ ने वहां प्रवेश किया, "नमस्ते जी." उसने दोनों को नमस्कार किया ओर फिर उसकी दृष्टि सोनिया पर जम गई जो नये मेकअप में ओर अधिक आकर्षक लग रही थी.
"फरमाइए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?" सोनिया की और लगातार घूरते हुए उसने पूछा.
"जी मैं बनवारीलाल हूँ. एक विज्ञापन कंपनी का चेयरमैन." हंसराज बोला.
"ओह, तो आप बनवारीलाल हैं." सेठ की दृष्टि इस बार भी सोनिया पर टिकी रही.
"जी नहीं, वह तो मेरी पर्सनल असिस्टेंट मिस कविता हैं. बनवारीलाल तो मैं हूँ." एक बार फिर हंसराज ने सेठ का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने का असफल प्रयास किया.
"मिस कविता. काफी प्यारा नाम है. लगता है काजू के रसगुल्ले मुंह में रख दिए गए हों. मैं ने आज ही यह नए प्रकार की मिठाई बनवाकर अपनी दूकान में रखवाई है."
"बात दरअसल यह है सेठ जी कि हम आपको हजारों रूपए के लाभ की खुशखबरी देने आए हैं." इस बार हंसराज को सफलता मिल गई और सेठ का सर उसकी ओर घूम गया.
"कैसा लाभ?" सेठ ने पूछा.
......continued
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1 comment:
कहानी धीरे धीरे अपने शबाब पर पहुंच रही है।
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