Wednesday, August 13, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 53

"इसलिए क्योंकि मैं उसके लिए ठग नही बल्कि एक सरकारी जासूस था. जो ट्रेनिंग के लिए उसके पास आया था. यह लगभग दो वर्ष पहले की बात है. जब मुझे एक छोटे से जुर्म में एक सप्ताह की सज़ा हो गई थी. जब मुझे जेल ले जाया जा रहा था उस समय जेलर से एक व्यक्ति की बातचीत मेरे कानों में पड़ी. वह व्यक्ति जेलर का लड़का था और उसकी सी बी आई में नई नई सर्विस लगी थी. उसी बातचीत में मुझे पता चला कि दो सप्ताह बाद उसे मेकअप की ट्रेनिंग के लिए साउथ में भेजा जा रहा है. मैं ने उस जगह का पता अच्छी तरह अपने दिमाग में बिठा लिया. क्योंकि अपने काम के लिए मेकअप कि कला मैं भी सीखना चाहता था.
जब मैं जेल से रिहा हुआ तो पहला काम मैं ने यही किया कि उस लड़के के बारे में पूरी जानकारी मैं ने हासिल की. और उसका आई कार्ड उड़ा लिया. फिर उस लड़के को अपने साथियों की मदद से एक केस में उलझा दिया और ख़ुद उसके स्थान पर उसी के नाम पर उस मेकअप विशेषज्ञ के पास पहुँच गया. फिर मुझे मेकअप की कला सीखने में केवल एक सप्ताह लगा." अपनी कहानी सुनाने के साथ साथ हंसराज के हाथ तेज़ी से सोनिया के चेहरे पर चल रहे थे. और जब उसकी बात पूरी हुई तो सामने रखे आईने में एक नया चेहरा दिखाई दे रहा था.
"ओ माई गाड, यह तुमने मुझे क्या बना दिया." सोनिया अपना चेहरा देखकर हैरत से चिल्लाई.
"मेकअप तो एकदम फिट हो गया है. मेरा विचार है कि अब हम अपना काम कर सकते हैं." हर कोण से सोने के चेहरे को देखते हुए हंसराज बोला.
"लेकिन हमें करना क्या होगा?" सोनिया ने पूछा.
"मैं तुम्हें समझा रहा हूँ. ध्यान से सुनना. किंतु उससे पहले मैं तुम्हें एक वस्तु दिखा रहा हूँ." हंसराज ने अपना बैग उठाया और उसे खोलकर कुछ निकालने लगा.
जब उस वस्तु को बाहर निकाला गया तो सोनिया ने विस्मय से कहा, "यह तो मूवी कैमरा है. यह तुमने कब ख़रीदा?"
"यह है तो कैमरा, लेकिन अन्दर से खाली है. यानि ये केवल कैमरे का खोल है. इसे मैं ने यहाँ के कबाड़ी मार्केट से पचास रूपये में ख़रीदा है. और पालिश इत्यादि करके इसे एकदम नया बना दिया है. यह खोल मुझे जब मार्केट में दिखाई पड़ा उसी समय मेरे मस्तिष्क में एक योजना बनने लगी थी." हंसराज उसे अपनी योजना समझाने लगा. फिर थोडी देर बाद वे दोनों तैयार होकर बाहर निकल रहे थे. हंसराज के हाथों में कैमरे वाला बैग था.
........continued

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