गंगाराम के जाने के बाद मुसीबतचंद भी उठा और बाहर जाने का इरादा किया. लेकिन उसी समय उसे ध्यान आ गया कि वह वहां किस कारण से आया था. उसने फोटोग्राफर को संबोधित किया, "अरे भाई, कब तक रोकोगे. अब मेरा फोटो खींच दो."
फोटोग्राफर, जो शायद हंसराज का हुलिया अपने मस्तिष्क में स्पष्ट कर रहा था, मुसीबतचंद की आवाज़ सुनकर चौंक पड़ा.
"जी हाँ. आइये. मैं आपका काम कर देता हूँ." उसने कहा.
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किसी ने बाहर से हंसराज के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया.
"बहुत देर लगा दी. " कहते हुए सोनिया दरवाज़ा खोलने के लिए बढ़ी. क्योंकि खटखटाने वाला हंसराज के अलावा और कोई नही हो सकता था.
दरवाज़ा खोलते ही वह चौंक उठी. क्योंकि बाहर दाढी मूंछों वाला एक अजनबी खड़ा था.
"क---कौन हो तुम?" सोनिया के स्वर में हलकी कंपकपाहट आ गई थी.
"क्या मि. हंसराज का कमरा यही है?" उस अजनबी ने पूछा.
"हंसराज? यहाँ कोई हंसराज नही रहता." सोनिया ने इंकार किया.
"यह कमरा नं. २४४ है?" उसने पूछा.
"हाँ. नंबर तो यही है इस कमरे का किंतु..." सोनिया कह कर चुप हो गई.
"होटल के रजिस्टर में तो यही कमरा मि. एंड मिसेस हंसराज के नाम बुक है." उसने सोनिया की और गौर से देखा, "मेरा विचार है कि आपको मिसेस हंसराज होना चाहिए."
"क्या बदतमीजी है. कौन हो तुम?" सोनिया ने क्रोधित स्वर में कहा.
......continued
उपन्यास - सूरैन का हीरो और यूनिवर्स का किंग
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उपन्यास - सूरैन का हीरो और यूनिवर्स का किंग उस लंबी कहानी की अंतिम कड़ी है
जिसके पूर्व हिस्से आप उपन्यासों - सूरैन का हीरो और
शादी का कीड़ा, सूरैन का हीरो...
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