Sunday, July 27, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 48

"ओ.के. आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं. जब तक पोर्ट्रेट की वापसी नही हो जाती, उस समय तक कोई खतरा उठाना उचित नही है." आई जी ने कहा.
"और आप एक योजना तैयार करे. जिससे कि जिस समय वह चोर पैसे लेने आये उसी समय हम उसे पकड़ लें." गृहमंत्री ने कहा.
"जी हाँ. मैं भी इसी पर विचार कर रहा हूँ. लेकिन मेरी योजना इस बात पर निर्भर होगी कि वह अगले फोन पर पैसे लेने के लिए स्थान का चयन क्या करता है."
"तो ठीक है. आप को फिलहाल दो काम करने हैं. पहला ये की उस काली भेड़ की खोज जिसने सुरक्षा व्यवस्था की जानकारी अपराधियों को दी. और दूसरा काम ये कि पोर्ट्रेट की पूरी सुरक्षा के साथ वापसी तथा अपराधियों की खोज." गृहमंत्री कुछ क्षणों के लिए इस प्रकार रुके मानो उनकी बात ख़त्म हो गई है. आई जी ने कुछ कहना चाहा किंतु उसी समय गृहमंत्री दुबारा बोलने लगे, "उस पोर्ट्रेट कि वापसी हर हाल में महत्वपूर्ण है. क्योंकि इससे न केवल देश कि बदनामी होगी बल्कि हमारे बारे में भी फैसला हो जायेगा. हम से मतलब है मैं, मि. रुद्रपाल जिन्होंने इटली कि सरकार से संपर्क किया था," सांस्कृतिक मंत्री की ओर देखा गृहमंत्री ने जो दांतों से अपने नाखून कुतर रहे थे, "और आप मि. राघवेन्द्र. क्योंकि पोर्ट्रेट की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी आप की ही थी."
"आप चिंता न करिए. पोर्ट्रेट हर हाल में सुरक्षित वापस आएगा और अपराधी पकड़े जायेंगे." आई जी ने दृढ़ स्वर में कहा. फिर उसके बाद मीटिंग समाप्त हो गई.
---------------------
"तुम्हारे आदमियों ने आर्ट गैलरी से पोर्ट्रेट चोरी ज़रूर किया था, लेकिन ये भी हकीकत है कि इस समय तुम्हारे पास नकली पोर्ट्रेट है. और असली पोर्ट्रेट यहाँ से दो सौ किलोमीटर दूर भरतपुर में है." मनोहरश्याम के विशेष फोन पर बॉस उससे संबोधित था.
"लेकिन ये कैसे सम्भव हो सकता है? लगता है हमारे किसी आदमी ने गद्दारी की है."
"मेरा भी यही विचार है. इसका कारण है कि भरतपुर से उस व्यक्ति ने सरकार से पोर्ट्रेट वापसी के लिए दस लाख डालर की मांग की है. और इसी रकम पर हम ने एडगर से सौदा किया था."
"मुझे तो गंगाराम पर शक है. क्योंकि वही बढ़ चढ़ कर बातें कर रहा था. किंतु सौदे की सही रक़म तो मैं ने किसी को नहीं बताई थी."
...........continued

No comments: