तीनों व्यक्ति आगे बढे, और उनमें से एक ने एडगर के साथ आये व्यक्ति के हाथ से सूटकेस छीन लिया. उस व्यक्ति ने इसपर कोई प्रतिरोध नही किया.
"ये सब करने से कोई फायदा नही." शांत स्वर में एडगर बोला, "मैं ने कभी साँप के आगे दूध का कटोरा नही रखा. ये सूटकेस खाली है."
मनोहरश्याम को एडगर की बात पर यकीन नही हुआ. वह अपने आदमी से सूटकेस लेकर खोलने लगा.
सूटकेस में ताला नही लगा था, अतः वह तुंरत खुल गया.
अन्दर वास्तव में डालर की जगह रद्दी कागज़ भरे थे. उसने गुस्से से सूटकेस उठाकर फ़ेंक दिया.
"मैं अब जाता हूँ. और जब असली पोर्ट्रेट का सौदा करना चाहो, तो मुझे ख़बर कर देना." एडगर व्यंगात्मक मुस्कान के साथ बोला और बाहर जाने के लिया मुड़ा.
मनोहरश्याम के आदमियों ने उसे रोकना चाहा किंतु मनोहरश्याम ने संकेत से उन्हें मना कर दिया.
एडगर तथा उसके साथी बाहर निकल गये.
उनके जाने के बाद मनोहरश्याम कुछ देर तक सोच में डूबा रहा, फिर उसने अपने आदमियों को बाहर जाने का संकेत किया.
उसने अब लेओनार्दो का पोर्ट्रेट गौर से देखना आरंभ कर दिया था.
कुछ देर बाद उस फोन की घंटी बजी जिस पर उसका संपर्क बॉस से होता था. उसने रिसीवर उठाया.
"क्या सौदा हो गया?" दूसरी तरफ से पूछा गया.
"सौदा नही हो पाया बॉस." मनोहरश्याम ने जवाब दिया और पूरा किस्सा सुना दिया. अंत में वह बोला, "कहीं ऐसा तो नही बॉस कि सौम्य इत्यादि ने हम लोगों के साथ धोका किया हो, और जो पोर्ट्रेट मैं ने असली के स्थान पर रखने के लिया दिया था वही वे लोग वापस ले आये हों, ताकि कोई जोखिम न उठाना पड़े."
"ऐसा नही है, इस समय सम्बंधित सरकारी मशीनरी में हलचल मची है, क्योंकि उन्हें ये पता चल चुका है कि आर्ट गैलरी में रखा पोर्ट्रेट नकली है. इस प्रकार जो पोर्ट्रेट तुम्हारे पास है वही असली है." दूसरो और से मनोहरश्याम के अज्ञात बॉस की आवाज़ आई.
आज तक मनोहरश्याम ने केवल अपने बॉस की आवाज़ ही सुनी थी. कभी उसका चेहरा देखने का मौका नही मिला था. यहाँ तक कि उसे उस फोन का नंबर भी नही ज्ञात था जहाँ से बॉस उससे संपर्क करता था.
............continued
उपन्यास - सूरैन का हीरो और यूनिवर्स का किंग
-
उपन्यास - सूरैन का हीरो और यूनिवर्स का किंग उस लंबी कहानी की अंतिम कड़ी है
जिसके पूर्व हिस्से आप उपन्यासों - सूरैन का हीरो और
शादी का कीड़ा, सूरैन का हीरो...
No comments:
Post a Comment