Sunday, June 29, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 42

"मैं दस लाख डालर ज़रूर दूँगा. लेकिन इससे पहले मैं निश्चिंत हो जाना चाहता हूँ कि पोर्ट्रेट असली ही है."
"नकली होने का तो कोई सवाल ही नही उठता. क्योंकि मेरे कार्यकर्ताओं ने बहुत मुश्किल से इसे हासिल किया है. फिर भी मैं पोर्ट्रेट आपके सामने रख देता हूँ. आप ख़ुद ही फैसला कर लें."
मनोहरश्याम उठा, और गुप्त अलमारी से पोर्ट्रेट निकालने लगा. कुछ देर बाद पोर्ट्रेट एडगर के सामने मेज़ पर था. और तीनों व्यक्ति ध्यान से पोर्ट्रेट को देख रहे थे.
"मि. विलियम!" एडगर ने भूरे सूट वाले को संबोधित किया, "आप उरानो कलाकृतियों को पहचानने में माहिर हैं. क्या आप बता सकते हैं कि ये पोर्ट्रेट असली है या नकली?"
"मैं अभी इसका पता करता हूँ." विलियम ने कहा. और पोर्ट्रेट का निरीक्षण करने लगा. फिर उसने जेब से एक आतिशी शीशा निकला और गहराई के साथ पोर्ट्रेट की लकीरें देखने लगा.
निरीक्षण के बाद उसने कहा , "ये पोर्ट्रेट नकली है."
एडगर ने मनोहरश्याम की तरफ देखा.
"क्या कहते हो! तुम फिर से इसका निरीक्षण करो. इसके नकली होने का प्रश्न ही नही उठता." मनोहरश्याम बोला.
"मैं ये बात पूरे यकीन के साथ कह सकता हूँ. ये पोर्ट्रेट नकली है. लेओनार्दो ने अपनी कलाकृति बनाने में पतले ब्रश के स्ट्रोक्स दिए थे. जबकि इस पोर्ट्रेट के स्ट्रोक्स मोटे ब्रश के हैं. और ओरिजनल से बहुत ज़्यादा अलग हैं."
"मुझे भी यही शक था." एडगर बोला, "क्योंकि आर्ट गैलरी में अभी भी पोर्ट्रेट रखा हुआ है और लोग उसे देखने जा रहे हैं."
"वह बदला हुआ पोर्ट्रेट है. जिसे मेरे साथियों ने असली के स्थान पर रख दिया था." मनोहरश्याम ने अपनी बात पर बल दिया.
"ये तो तुम कह रहे हो. लेकिन मुझे मि. विलियम पर पूरा यकीन है. उनका अन्वेषण ग़लत नही हो सकता. इस लिए हमें धोखा देने की कोशिश मत करो. और अगर असली पोर्ट्रेट हासिल कर चुके हो तो हमें दे दो." इस बार एडगर की आवाज़ तेज़ हो गई थी.
"देखिये मि. एडगर, अपने हम से दस लाख डालर में इस पोर्ट्रेट को हासिल करने का सौदा किया. हम ने आर्ट गैलरी में खतरों से खेलते हुए इसे उड़ाया. अब अच्छा यही है कि हमें पेमेंट दीजिये और पोर्ट्रेट ले जाइए. हमारी ज़िम्मेदारी अब ख़त्म हो चुकी है." मनोहरश्याम कि आवाज़ भी तेज़ हो चुकी थी.
"देखिये मि. मनोहर, दस लाख डालर हम तभी दे सकते हैं जब हमें असली पोर्ट्रेट मिलेगा. वैसे ये नक़ल भी बहुत शानदार तैयार कि गई है. इसके लिए मैं आपको सौ डालर देने के लिए तैयार हूँ." एडगर ने नकली पोर्ट्रेट हाथ में लेकर कहा.
मनोहरश्याम का चेहरा क्रोध के कारन लाल हो गया. उसने अपने पैर के पास लगा गुप्त बटन दबाया. चूंकि उसके आगे मेज़ थी अतः एडगर वगैरा उसकी हरकत नही देख पाए. कुछ ही पल बीते थे कि तीन हट्टे कट्टे व्यक्ति अन्दर दाखिल हो गये.
"अब तो पोर्ट्रेट भी मेरे पास रहेगा और पैसे भी तुम्हें देने पड़ेंगे." मनोहरश्याम बोला और आने वालों को संबोधित किया, " इस व्यक्ति के हाथ से सूटकेस ले कर इन्हें बाहर निकल दो."
..........continued

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