Sunday, June 22, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 40

"देखो, अगर वो पोर्ट्रेट तुम्हारे पास है तो उसे वापस कर दो. क्योंकि उसमें पूरे देश की बदनामी होगी. अगर तुम यहाँ के नागरिक हो तो तुम्हें इसके बारे में सोचना चाहिए." इं. दिनेश ने समझाया.
"मैं ने आज तक अपने अलावा और किसी के बारे में नहीं सोचा. हाँ अगर सरकार इस पोर्ट्रेट के अच्छे दाम अदा कर दे तो मैं इसे बेच सकता हूँ." दूसरी ओर से कहा गया.
"ओह, तो तुम सरकार को ब्लैकमेल करने की सोच रहे हो."
"मेरा ख्याल है कि तुम्हारी समझ में मेरी बात नही आ रही है. मैं दो दिन बाद फिर फोन करूँगा. तब तक तुम अपने अफसरों से तै कर लेना कि पोर्ट्रेट की वापसी के लिए सरकार दस लाख डालर अदा कर सकती है या नही. अगर जवाब नही में हुआ तो उसी पल पोर्ट्रेट की चोरी का समाचार देश के साथ साथ विदेशों में भी फैल जायेगा."
कहने के साथ ही फोन कट गया. इं. दिनेश हेलो हेलो करता रहा, किंतु लाइन मौन हो गई थी.
रिसीवर क्रेडिल पर रखकर वो दुबारा आई जी के केबिन की तरफ़ बढ़ गया. जब वो अन्दर प्रविष्ट हुआ तो आई. जी. ने उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा.
"आपका विचार सही था." इं. दिनेश ने कहा और फोन पर हुई बातचीत सुना दी जिसे आई. जी. राघवेन्द्र ने पूरे ध्यान से सुना.
"मैं ने एक सिपाही को पता लगाने के लिए भेजा है कि ये काल कहाँ से की गई है. वह आता ही होगा." अंत में इं. दिनेश ने कहा.
"ये काम तुमने ठीक किया. हमें हर हाल में वह पोर्ट्रेट तीन दिनों के अन्दर हासिल करना है. क्योंकि इटली की सरकार ने जितने समय के लिए उसे दिया है, तीन दिनों के बाद वो पूरा हो जाएगा." आई. जी. राघवेन्द्र का चेहरा सपाट था.
"लेकिन आर्ट गैलरी में सख्त पहरा होते हुए ये चोरी किस तरह हो गई, यही आश्चर्य की बात है."
"जिस समय आर्ट गैलरी में चोरी हुई, कोई पहरेदार वहां नहीं था." आई. जी. ने कहा.
"कमाल है, ये कैसे हो सकता है?" इंस्पेक्टर के स्वर में विस्मय था.
"हाँ. ये समाचार देखो." अपने हाथ में पकड़ा अखबार उसने इं. दिनेश के सामने रखा और एक समाचार पर ऊँगली रखी.
.........continued

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