Thursday, June 12, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 39

"ये बात तो तै है कि ये काम एक अकेले व्यक्ति का नही है. क्योंकि अकेला व्यक्ति एक साथ टी.वी.कैमरे में गड़बड़ करके पोर्ट्रेट नही बदल सकता. रही बात पहरेदारों की, तो हो सकता है उन्होंने पहरेदारों को कहीं उलझा दिया हो."
"ये बात तो पहरेदारों के साथ पूछताछ में पता लग जायेगी कि उनके साथ उस समय क्या घटित हुआ." इं. दिनेश ने कहा.
"इस बारे में पहरेदारों से बात करना उचित नही होगा. क्योंकि हमें पोर्ट्रेट चोरी की बात लीक नही करनी है. ये बात पता करने के लिए हमें कोई और तरकीब ढूंढनी होगी." आई. जी. ने कहा.
उसी समय एक सिपाही अन्दर दाखिल हुआ और इं. दिनेश को संबोधित कर के बोला, "सर, फोन पर कोई व्यक्ति पोर्ट्रेट के सम्बन्ध में बात करना चाहता है."
"कैसी बात?" इं. दिनेश ने पूछा.
"पता नही, उसका कहना है कि वह एक बार और फोन कर चुका है."
"ओह, ये ज़रूर उसी व्यक्ति का फोन होगा, जिसके बारे में हम लोग बात कर रहे थे." इं. दिनेश ने आई. जी. से कहा और फिर फोन रिसीव करने के लिए कुर्सी से उठ खड़ा हुआ.
आई. जी ने भी साथ में उठना चाहा, फिर कुछ सोच कर रूक गया. और ताज़ा समाचार पत्र उठाकर पढने लगा, जिसमें पोर्ट्रेट चोरी का कोई समाचार नही था. हाँ आर्ट गैलरी के पास हुए बम विस्फोट का समाचार ज़रूर था. समाचार पढ़ते हुए अचानक उसकी आँखों में चौंकने के लक्षण पैदा हुए.
...................
"इं. दिनेश स्पीकिंग!" रिसीवर उठाकर इं. दिनेश ने माउथपीस में कहा.
"अब तक तुम्हें पोर्ट्रेट चोरी की ख़बर मिल चुकी होगी." दूसरी ओर से कहा गया.
"ओह, तो तुम ही हो. इससे पहले भी तुम फोन कर चुके हो." इन. दिनेश ने गहरी साँस लेकर कहा.
"हाँ, मैं ने ही इससे पहले फोन किया था." उधर से कहा गया. इं. दिनेश जल्दी जल्दी पर्चे पर कुछ लिखने लगा. फिर वह पर्चा उसने पास खड़े सिपाही को पकड़ा दिया.
"लेकिन तुम कौन हो और क्या चाहते हो?"
"मैं कौन हूँ, ये बताना बेकार है. हाँ मैं ये बता सकता हूँ कि मैं क्या चाहता हूँ. बात ये है कि वो पोर्ट्रेट जिसकी कीमत विश्व बाज़ार में पाँच करोड़ डालर है, इस समय मेरे पास है."
"क्या बक रहे हो." तेज़ आवाज़ में कहा इं. दिनेश ने.
"मैं बकवास नही कर रहा हूँ, बल्कि ये बात पूरी तरह सच है कि पोर्ट्रेट मेरे पास है. और मैं इसका सौदा करने जा रहा हूँ."
........continued

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