Saturday, June 7, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 38

"ये तो तै है कि जब तक पोर्ट्रेट कंट्रोल रूम की दृष्टि में था, उसके चोरी होने का प्रश्न ही नही उठता. इसका मतलब ये हुआ कि कुछ देर के लिए कंट्रोल रूम के ओपरेटरों की दृष्टि पोर्ट्रेट पर से ज़रूर हटी थी."
"लेकिन ऐसा कैसे सम्भव है? अगर पोर्ट्रेट कि निगरानी का काम केवल एक ओपेरेटर का होता तो ये माना जा सकता है कि हो सकता है उसकी आंख झपक गई हो. लेकिन यहाँ तो तीन ओपेरेटर एक साथ स्क्रीन पर ऑंखें गडाये पोर्ट्रेट को लगातार देख रहे थे."
"तुम ग़लत ढंग से सोच रहे हो इंसपेक्टर." आई जी ने कहा,"यहाँ बात एक या तीन की नही है. यदि केवल एक ओपेरेटर भी होता तो भी ये बात नही मानी जा सकती कि पोर्ट्रेट बदलने वाला व्यक्ति तभी ये काम करता जब ओपेरेटर स्क्रीन के सामने न होता....तुम अच्छी तरह विचार कर के बताओ कि क्या टी.वी. स्क्रीन कुछ देर के लिए खराब हुई थी? या कोई ऐसी दूसरी बात हुई थी जिससे ओपेरेटरों कि दृष्टि पोर्ट्रेट पर से हट गई हो?"
इन. दिनेश सोचने लगा. फिर उसकी आँखों में चमक आ गई, "आप सही कह रहे हैं सर. कुछ देर के लिए टी.वी. स्क्रीन पर से आर्ट गैलरी का दृश्य गायब हो गया था.हमारा विचार था कि टी.वी. में कोई खराबी पैदा हो गई है."
"ये खराबी कितनी देर रही?"
"मेरा विचार है कि लगभग दो तीन मिनट तक. हम लोग स्पेशल दस्ता आर्ट गैलरी भेजने ही वाले थे कि उसी समय टी. वी. ठीक हो गया और पोर्ट्रेट को अपनी जगह पर सही सलामत देखकर हमने इत्मीनान की साँस ली."
"ठीक है. ये पूरी तरह साफ हो गया कि पोर्ट्रेट उसी समय चोरी हुआ था. एक पेशेवर गिरोह के लिए दो मिनट में पोर्ट्रेट बदलना कोई मुश्किल काम नही है."
"लेकिन उस समय वहाँ पहरेदार भी तो थे. अगर वो कोई गिरोह था तो उनकी दृष्टि से बचकर अपना काम कैसे कर गया?" इं. दिनेश ने प्रश्न उठाया.
........continued

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