Friday, April 25, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 29

"तुम सभी का काम काफी बढ़िया रहा." पोर्ट्रेट को अलमारी में रखने के पश्चात मनोहरश्याम बोला.
"ठीक समय पर बम फटा. रोशन भी कैमरे का कनेक्शन सही समय पर काटने में कामयाब हो गया.सौम्य अपना काम दिए गये समय के अंदर करने में कामयाब हो गया. अब यहाँ की सरकार सर पीटेगी जब उसे पता चलेगा कि म्यूज़ियम का असली पोर्ट्रेट गायब हो गया."
"वो विदेशी ग्राहक कौन है जो इस पोर्ट्रेट को खरीदना चाहता है?" सौम्य ने पूछा.
"संभवत वो यू.एस.ए. का है. किंतु ये मेरा केवल अनुमान है. नाम है माइक एडगर. वो इटली से इसका पीछा कर रहा था. यहाँ उसने इसे चुराने का मुझसे सौदा किया."
"वह इस पोर्ट्रेट को बाहर कैसे ले जाएगा? क्योंकि अब तक सरकार को पता लग चुका होगा की म्यूज़ियम में रखा पोर्ट्रेट नकली है. अब हर तरफ़ जांच चल रही होगी." रोशन बोला.
"इससे हमें कोई मतलब नही होना चाहिए. कुछ ही देर में वह आता होगा. हमें उससे रकम लेकर ये पोर्ट्रेट दे देना है. फिर हमारा काम समाप्त हो जाएगा. तुम लोग अब जाओ. तुम्हारा मेहनताना पचास पचास हज़ार रुपये दो तीन घंटों बाद तुम लोगों को मिल जायेंगे."
"वो विदेशी इस पोट्रेट के लिए कितनी रकम दे रहा है?" गंगाराम ने पूछा.
"मेरा विचार है कि इससे तुम्हें कोई मतलब नही होना चाहिए." मनोहरश्याम ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा.
"मतलब तो है. क्योंकि इसी से हम पता करेंगे कि हमें मिलने वाला मेहनताना कम है या ठीक है." गंगाराम ने कुर्सी से पीठ टिकाते हुए कहा.
"अगर मेहनताना कम भी है तब भी तुम्हें गुज़ारा करना पड़ेगा. क्योंकि तुम लोगों को हर महीने बीस बीस हज़ार रूपये वेतन के रूप में इन्ही कामों के लिए मिलते हैं. और ये रकम उसके अलावा है.अब तुम लोग जा सकते हो." मनोहरश्याम ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा.
फिर कोई कुछ नही बोला और वे लोग चुपचाप उठकर बाहर निकल गये.
उनके जाने के बाद वो अपने विचारों में लीन हो गया. उसकी तंद्रा उस समय भंग हुई जब पास रखे फोन की घंटी बजी.
........continued

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