Monday, April 21, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 28

"मेरी तरक्की कब होगी?"
मुसीबतचंद अब एक कुर्सी पर बैठ गया. किसी ने कोई आपत्ति नही की.
अब मुसीबतचंद इंसपेक्टर का हाथ देख रहा था. कुछ देर गौर से देखने के बाद बोला, "तुम्हारी तरक्की की राह में एक रुकावट पड़ रही है."
"कैसी रुकावट?"
"मैं इसके बारे में स्पष्ट नही समझ पा रहा हूँ. किंतु उसका डील डौल भरी भरकम है."
"ओह, मुझे पहले ही शक था की मेरी तरक्की में एस पी राम किशोर रोड़े अटका रहा है. अब मैं उस से समझ लूंगा. मेरी पहुँच भी बहुत ऊपर तक है. ऐसी जगह ट्रान्सफर कराऊंगा की हमेशा याद रखेगा."
"लेकिन वो ऐसा क्यों कर रहा है?" एक सिपाही ने पूछा.
"एक बार बदमाशों की आपसी लड़ाई में एक इनामी बदमाश मारा गया था. राम किशोर ने उसको मारने का क्रेडिट स्वयं लेना चाहा, किंतु उससे पहले ही मैं ने बदमाश की लाश के साथ फोटो खिंचवा लिया. अखबारों ने पुलिस मुठभेड़ में उसको मारने का क्रेडिट मुझे दे दिया. तभी से वो मुझसे खार खाता है."
"फिर तो उसका कोई उपाय सोचना पड़ेगा." वही सिपाही बोला.
"उपाए क्या सोचना है. बस ये बात ऊपर तक पहुँचा देनी है कि शहर में जो जुर्म बढ़ रहे हैं, उसके पीछे एस पी की नाकामी है. बस तुरंत उसका ट्रान्सफर हो जायेगा."
"आपका विचार सही है. अब देखिये, उसी के कारण एक बम काण्ड भी शहर में हो गया." दूसरा सिपाही बोला.
"ओह, बम काण्ड के बारे में मैं तो भूल ही गया था." इंसपेक्टर ने चौंक कर कहा.
"फिर इसका क्या करें?" उस सिपाही ने मुसीबतचंद की और संकेत किया, जिसने उसे पकड़कर गाड़ी में डाला था.
"थोड़ा अकल से काम लिया करो मेवालाल." इंसपेक्टर ने सिपाही को घूरा, "भला ये ज्योतिषी महाराज इस प्रकार के कार्य कहाँ करेंगे. आगे से किसी भी जुर्म में फंसाने के लिए ऐसे व्यक्ति को पकड़ना जो बेकार हो."
"गलती हो गई जी." सिपाही सर झुकाकर बोला.
"अच्छा तो ठीक है. ज्योतिषी जी, अब आप अपने घर जाइए. और ऊपर वाले से प्रार्थना कीजिये कि मैं राम किशोर को सबक सिखाने में सफल हो जाऊं." इंस्पेक्टर मुसीबतचंद से बोला.
इस तरह मुसीबतचंद को वहाँ से छुटकारा मिल गया.
.........continued

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