Sunday, April 13, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 27

"मुसीबतचंद का क्या हुआ?" सोनिया ने पूछा.
"उसे सामने फुटपाथ पर बिठा दिया था. वो वहीं होगा. उसकी चिंता छोड़ो, वो अपने आप घर आ जाएगा."
"पोर्ट्रेट चुराने में कोई परेशानी तो नही हुई?"
"किस्मत अच्छी थी जो ये हमें मिल गया. वरना कोई और इसे ले उड़ा था. मौका मिलते ही मैं ने इसे उनके पास से पार कर दिया."
"ओह, कौन हो सकते हैं वो लोग?"
"पता नहीं. लेकिन इतना ज़रूर है की दूसरी इमारत में बम का धमाका उनहोंने ही किया होगा. ताकि लोग उधर आकृष्ट हो जाएं और वे आराम से अपना काम कर सकें."
"तो अब तुम्हारा क्या इरादा है?" सोनिया ने पूछा.
"अब हमें जल्द से जल्द ये शहर कुछ दिनों के लिए छोड़ देना है. क्योंकि जल्दी ही कलाकृति चोरी होने का पता चल जायेगा. तब शायद हम लोगों के लिए यहाँ कलाकृति रखना असंभव हो जाएगा. इसके अलावा हमें जल्द से जल्द कोई ग्राहक भी ढूँढना होगा."
"ग्राहक ढूँढना तो बहुत मुश्किल होगा. क्योंकि हम इस बारे में पूरी तरह अनजान हैं कि इस तरह का सौदा कहाँ करना चाहिए. अगर हमारे पास पोर्ट्रेट होने कि बात फैल गई तो हमें जान के लाले पड़ जायेंगे. इसके अलावा ग्राहक को ये भी सिद्ध करना होगा कि ये पोर्ट्रेट असली है."
"मुझे भी इन कठिनाइयों का आभास है. किंतु मेरा विचार है कि मैं ने एक अच्छा ग्राहक ढूँढ लिया है."
"कौन है वो?" सोनिया ने उत्सुकता से पूछा.
"इसके बारे में मैं बाद में बताऊंगा. फिलहाल तो जल्दी से घर पहुंचकर शहर से बाहर निकलने कि तैयारी करो." हंसराज बोला.
फिर बाकी का रास्ता खामोशी से तै हुआ.
................
"हाँ तो अब बताओ कौन हो तुम." थाने में पहुँचने के बाद इंसपेक्टर ने डपटकर मुसीबतचंद से पूछा.
"एक मिनट सर." वो सिपाही बोला जिसका मुसीबतचंद ने भविष्य बताया था. उसने धीरे से इंसपेक्टर के कान में कुछ कहा और इंसपेक्टर की त्योरियां ढीली पड़ गईं.
"ओह, तो तुम ज्योतिषी हो." उसने नर्म लहजे में कहा.
"जी हाँ हुज़ूर. मेरी भविष्यवाणियाँ शत प्रतिशत सही निकलती हैं."
"तो कुछ मेरे बारे में भी बताओ." इंसपेक्टर ने अपना हाथ आगे बढाया.
......continued

1 comment:

अमित कुमार said...

kahanee bahut achchhe mod par pahunch gayi hai.