बैग वाला व्यक्ति जो वास्तव में सौम्य था, तेज़ी से बाहर निकला. और ताला खोलने वाले व्यक्ति ने पुनः ताला लगा दिया. फिर वे लोग तेज़ी से बाहर निकले, किंतु इससे भी अधिक तेज़ी से हंसराज अपने पहले वाले स्थान पर पहुँच चुका था.
"लो बेटे हंसराज, तुम्हारा माल तो ये लोग ले उडे. अब तुम क्या करोगे." अपने मन में बड़बड़ाता हुआ वो उन लोगों को देखने लगा जो अब कमरे का दरवाज़ा बंद कर रहे थे.
फिर उसने उन लोगों का पीछा करने का निश्चय किया. और जैसे ही वे लोग कुछ दूर पर पहुंचे, वो उनके पीछे लग गया.
उधर सौम्य अपने साथियों से कह रहा था,"तुम लोग सामने के दरवाज़े से बाहर निकलो जबकि मैं पीछे पानी के पाइप के सहारे बाहर निकलूंगा. क्योंकि हो सकता है बाहर पहरेदार आ गये हों. इस दशा में तुम उन्हें रोक सकते हो."
"ओ.के. मि. सौम्य." दोनों ने एक साथ कहा और सौम्य उनका साथ छोड़कर दूसरी ओर मुड़ गया.
हंसराज ने सौम्य का पीछा करने का निश्चय किया. क्योंकि कलाकृति उसी के पास थी. अब उसके लिए कलाकृति उडाने का अधिक अवसर मिलने की सम्भावना थी.
कुछ देर बाद सौम्य छत पर था. उसे अभी तक आभास नही मिल पाया था कि उसके पीछे कोई है.
फिर हंसराज को अवसर मिल गया.कंधे से बैग उतरकर सौम्य ने अपने पीछे रखा और जूते के तस्मे खोलने लगा. हंसराज ने बैग पर हाथ डाल दिया. कुछ ही पलों में असली कलाकृति उसके बैग में पहुँच चुकी थी जबकि नकली सौम्य के बैग में.
जूते अपनी जेबों में ठूसने के बाद सौम्य ने बैग अपने कंधे पर डाला और उसी पाइप के सहारे नीचे उतरने लगा जिससे हंसराज ऊपर आया था.
कुछ देर बाद सौम्य नीचे झाड़ियों में गुम हो चुका था. हंसराज कुछ देर छत पर बैठा रहा फिर वो भी नीचे उतरने लगा.
दूर से पुलिस गाड़ियों के हार्न की आवाजें आ रही थीं. जो शायद बम से प्रभावित इमारत के निरीक्षण के लिए आई थी.
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"तू कौन है बे." एक पुलिसवाले ने मुसीबतचंद के सामने डंडा पटका और मुसीबतचंद उछ्ल गया.
"जे..जी, मैं मुसीबतचंद हूँ. ज्योतिषी. क्या आप अपना भविष्य जानना चाहते हैं? हाथ आगे बढाइये. भगवान कसम आपसे एक पैसा भी नही लूंगा." एक ही साँस में वो बोल गया.
"क्या बात है?" उन्हें बातें करता देखकर एक इंस्पेक्टर उनकी तरफ़ घूम गया. बम प्रभावित इमारत का मलबा हटाने और बचाव कार्य के लिए फायर ब्रिगेड की गाडियां वहाँ पहुँच चुकी थीं. और साथ ही साथ पुलिस की गाडियाँ भी. अब पुलिस घटना स्थल के निरीक्षण के बाद आसपास के लोगों से पूछताछ कर रही थी.
"ये आदमी मुझे संदिग्ध लग रहा है. अपने को ज्योतिषी बताता है." सिपाही बोला.
"ठीक है. इसे गाड़ी में डाल दो." इंस्पेक्टर ने मुसीबतचंद को घूरते हुए कहा.
"क..क्यों माई बाप. मैं ने तो कोई अपराध नही किया." मुसीबतचंद हकला गया.
"चुप रहो. तुम्हारा अपराध तो हवालात में पता चलेगा. चलो मेरे साथ." सिपाही ने मुसीबतचंद की बांह पकड़ी और गाड़ी की ओर ले जाने लगा.
गाड़ी के पास पहुंचकर उसने मुसीबत्चंद को अन्दर किया और वहाँ उपस्थित सिपाहियों से बोला, इसका ध्यान रखना. कहीं भागने न पाए. बहुत खतरनाक मुजरिम है.
"क्या इसी ने बम रखा था?" एक ने पूछा.
"ये पता तो तब चलेगा जब ये हवालात में मुंह खोलेगा." सिपाही मुसीबतचंद को पहुंचकर चला गया और वहाँ उपस्थित दोनों सिपाही उसे घूरने लगे.
.........continued
उपन्यास - सूरैन का हीरो और यूनिवर्स का किंग
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उपन्यास - सूरैन का हीरो और यूनिवर्स का किंग उस लंबी कहानी की अंतिम कड़ी है
जिसके पूर्व हिस्से आप उपन्यासों - सूरैन का हीरो और
शादी का कीड़ा, सूरैन का हीरो...
1 comment:
Thanks, great post
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