Sunday, March 23, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 22

मुसीबतचंद अपने ताम झाम के साथ आर्ट गैलरी के सामने फुटपाथ पर पसरा हुआ था. माथे पर तिलक, गेरुआ वस्त्र व पगड़ी में वह पूरी तरह से ज्योतिषी बना हुआ था. परिचय की थोडी बहुत कमी सामने रखे उस बोर्ड ने पूरी कर दी थी जिसपर एक हाथ अपनी पूरी लकीरों के साथ विराजमान था.
बड़ी कठिनाइयों के बाद हंसराज ने उसे ये कहकर तैयार किया था कि शहर में किसी को खाली समय नही बिताना चाहिए. अगर उसके पास ज्योतिष विद्या है तो उसे इसका प्रदर्शन करना चाहिए.
किंतु मुसीबतचंद को उसके स्थान पर पहुँचाने के बाद हंसराज ने नकली पोर्ट्रेट उसके पास नही रखा. क्योंकि उसने अब अपने प्लान में थोड़ा परिवर्तन कर दिया था.
धड़धड़ाती हुई बुलेट मुसीबतचंद के ठीक सामने आकार रुकी और वोह चौंक कर आने वाले को देखने लगा. जिसका भारी भरकम शरीर कुरते पाजामे और सफ़ेद दाढ़ी में काफी शानदार लग रहा था.
वो व्यक्ति बुलेट से उतर कर मुसीबतचंद को देखता रहा फिर बोला, "का तुम ज्योतिषी हओ?"
"जी हाँ कहिये." मुसीबतचंद ने उत्तर दिया.
"बात ई है कि हमरा बिजनेस है, दूध का. हमरे इहाँ खालिस भईंस का दूध मिलत है." उसने बताया.
"अपनी जिस भैंस का भविष्य जानना चाहते हो उसका एक गिलास खालिस दूध पिला दो." खालिस दूध पाने का इससे अच्छा अवसर और कोई नही था.
"असल में आज हमरी एक भैंस भाग गई."
"किसके साथ?" मुसीबतचंद ने पूछा.
"केहू का साथ नाही. आज सुबे घास चरे गई रही. उहाँ दुई सांड भी थे. वह एक की ओर मुखातिब होए गई तो दुसरे को गुस्सा आये गवा. अब जौ उसने दौड़ाया तो बिचारी डर के मारे पता नही कहाँ गाएब होए गई. अब हमरा हाथ देख के बताव कि हमरी भैंस कब मिली?" दूधवाले ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया.
मुसीबतचंद ने थैले में से लेंस निकलकर उसका हाथ देखना आरंभ किया.
"हम वादा करित है कि अगर हमरी भैंस मिल जैहै तो चालीस दिन तलक अपने गाहकों को खालिस दूध पिलैबये."
"तब तो तोहरी भैंस फौरन मिल जायेगी. तोहरे हाथ की लकीरें कहत थीं कि कल तलक तुम्हारी भैंस मिल जायेगी." दूधवाले की भाषा सुनकर मुसीबतचंद भी खिचडी भाषा बोलने लगा था.
"भगवन तोहार भला करे. उसके पीछे हमरा चार लीटर पेट्रोल अब तक फूंक गवा है." उसने दुबारा बुलेट पर बैठते हुए कहा.
"अच्छा तो दक्षिणा तो देते जाओ." किक मरते देखकर मुसीबतचंद बोला.
.........continued

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