Saturday, March 8, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 18

मनोहरश्याम का कद लगभग पाँच फिट था, किन्तु शरीर का फैलाव बहुत अधिक होने के कारण वह बहुत नाटा प्रतीत होता था. वह एक ऐसी इनवेस्टमेंट कम्पनी का मैनेजिंग डायरेक्टर था जो काफी समय से घाटे में चल रही थी. किन्तु इसके बाद भी उसके ठाठ बाट में कोई फर्क नही आया था.
उसके जानने वालों में अधिकतर लोगों का यही विचार था की वह केवल अपनी साख बचाए रखने के लिए ठाठ बाट से रहता है. कुछ लोगों का यह भी शक था की उसका सम्बन्ध अंडरवर्ल्ड से है. किन्तु पक्का सुबूत किसी के पास नही था.
अपने निवास स्थान के एक कमरे में अकेला बैठा वह किसी विचार में लीन था. मुंह में दबे सिगरेट से छूटता धुआं उसके काले चेहरे के सामने इस प्रकार फैल रहा था मानो किसी अफ्रीकी दलदल से भाप निकल रही हो.
उसकी दृष्टि सामने लगे नीले बल्ब पर पड़ी जो जलने बुझने लगा था.
उसने सामने रखे इन्टरर्कौम का रिसीवर उठाया और बोला, "उन्हें यहीं भेज दो."
फिर कुछ देर बाद उसके सामने तीन हट्टे कट्टे व्यक्ति उपस्थित थे. उनके शरीरों पर चढ़े सूट चेहरे की सख्ती से ज़रा भी समानता नही दिखा रहे थे.
मनोहरश्याम ने उन्हें बैठने का संकेत किया और वे सामने रखी कुर्सियों पर बैठ गये.
कुछ देर उनके बीच चुप्पी छाई रही फिर आने वालों में से एक बोला, "हमें क्यों बुलाया गया है?"
"बता रहा हूँ." मनोहरश्याम ने सिगरेट का एक कश लिया. फिर उसने मेज़ की दराज़ से दो तीन फोटोग्राफ निकाल कर उनके सामने रख दिए.
"यह क्या है?" एक ने उन फोटोग्राफ को उठाते हुए पूछा.
"ये दारूलशफा आर्ट गैलरी के फोटो हैं. इनमें से एक में जो तुम चित्र देख रहे हो वह एक प्रसिद्ध पोर्ट्रेट है. तुम्हें उस पोर्ट्रेट को वहाँ से ट्रान्सफर करके यहाँ पहुँचाना है. क्योंकि एक विदेशी ग्राहक उसे खरीदना चाहता है."
"काम हो जाएगा बॉस." अब तक उनमें से केवल एक व्यक्ति बोल रहा था. बाकी दो मौन थे.
.......continued

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