Thursday, February 28, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 15

दारुलशफा आर्ट गैलरी की इमारत के बाहर अच्छी खासी भीड़ थी. लोग खास तौर से लेओनार्दो की कलाकृति देखने आये थे. इन्होने टिकट लिया और आर्ट गैलरी के भीतर आ गये.
अंदर सामने ही बड़े से कैनवास के ऊपर ब्रुश में काला रंग लगाकर दो चिड़ियो जैसी आकृतियाँ बना दी गई थीं. शीर्षक था 'अँधा'.
"इस चित्र में अँधा कौन है?" सोनिया ने पूछा.
"कोई नहीं. यह शीर्षक हमारे जैसे माडर्न आर्ट देखने वालों के लिए है. क्योंकि यह आर्ट केवल एक अँधा ही समझ सकता है." हंसराज ने कहा और आगे बढ़ गया.
"ये देखो, कितनी शानदार पेंटिंग है." मुसीबत्चंद ने एक और संकेत किया जहाँ बड़े से कागज़ पर ब्रुश से दो लकीरें खींच दी गई थीं. पेंटिंग का नाम था, "मैं और वह."
"हाँ. अगर इसमें एक लकीर और खींच दी जाये तो शीर्षक बन सकता है, "मैं तुम और वह." हंसराज बोला.
"मेरा विचार है कि चित्रकार ने वास्तव में अपनी कला का शानदार प्रदर्शन किया है और वह तारीफ के काबिल है." मुसीबतचंद बोला.
तभी किसी ने उसके कंधे पर पीछे से हाथ रखा, "धन्यवाद."
मुसीबतचंद चौंक कर पीछे मुड़ा तो एक सज्जन जिनकी खोपड़ी बीच से सफाचट थी, वहाँ खड़े थे.
मुसीबतचंद ने उन्हें इस प्रकार देखा मानो पहचानने कि कोशिश कर रहा है, फिर बोला, "माफ कीजियेगा, शायद मैं ने आपको कहीं देखा है. किन्तु इस समय पहचान नही पा रहा हूँ."
"मैं शेफाली हूँ. इन कलाकृतियों का सृजक. अपने इनकी प्रशंसा की. जिसके लिए मैं आपको धन्यवाद कहता हूँ." आगंतुक ने कहा.
"ओ हो, आप जैसे कलाकार से मिलकर वाकई बड़ी खुशी हुई." मुसीबत्चंद ने उससे गर्मजोशी से हाथ मिलाया.
हंसराज ने भी अपना हाथ आगे बढाया, "लगता है आपके पैरेंट्स को भी माडर्न आर्ट का शौक था." वह बोला.
"क्यों?" शेफाली ने चौंक कर पूछा.
"क्योंकि आपका नाम कुछ अजीब सा है." मैं तो यही समझा कि चित्रकार कोई औरत है.
.........continued

3 comments:

admin said...

बडी जबरदस्त फैंटेसी है। आपको बहुत-बहुत बधाई।

zeashan haider zaidi said...

शुक्रिया. उम्मीद है आगे की कहानी और पसंद आयेगी.

Udan Tashtari said...

उम्दा लेखन...बड़ी सुन्दर शैली है, पसंद आई.