Wednesday, February 27, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 14

"पाँच करोड़ डालर." हंसराज की ऑंखें फैल गईं.
"तुम वह कलाकृति उड़ लो. फिर कहीं भी विदेश में बेचकर हम मालामाल हो जायेंगे. और स्विट्जरलैंड में बस जायेंगे."सोनिया ने अपना इरादा ज़ाहिर किया.
"पागल हो. अगर वह इतनी कीमती कलाकृति है तो उसकी सुरक्षा का भी वैसा ही इन्तिजाम होगा. मेरे ख्याल में तो उसे चुराना असंभव होगा."
"लेकिन ये तो सोचो की अगर हम इसमें कामयाब हो गए तो कितना फायदा होगा. मुझे पूरा यकीन है कि तुम उसे उडाने की कोई अचूक तरकीब खोज लोगे." सोनिया ने हंसराज का हाथ दबाया.
हंसराज ने कुछ पलों तक सोचा फिर बोला, "ठीक है, कल हम वहाँ चलकर सिचुएशन देखेंगे, फिर मैं कोई प्लान बनाऊँगा. "
"तो फिर मैं ग्यारह बजे आउंगी. क्योंकि यही प्रदर्शनी के खुलने का टाइम होता है." इस तरह उनके बीच प्रदर्शनी जाने का निश्चय पक्का हो गया.
.................
मुसीबतचंद, तुम घर पर कुछ समय के लिए रहो. हम लोग एक प्रदर्शनी देखने जा रहे हैं." हंसराज ने तैयार होते हुए कहा.
"मैं भी चलूँगा. मुझे प्रदर्शनी देखने का बहुत शौक है."
हंसराज ने मन ही मन उसे एक तगड़ी सी गाली दी और सोनिया कि तरफ़ देखा.
"कोई बात नहीं. फिर तीनो ही चलते हैं."
थोडी ही देर में तीनों प्रदर्शनी में जाने के लिए तैयार थे.
.....continued

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