Tuesday, March 4, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 16

"ओह -- हा हा, " शेफाली ने एक कहकहा लगाया, "अक्सर लोग मेरे बारे में ये भूल कर जाते हैं."
"आपकी कलाकृतियाँ वास्तव में लाजवाब हैं. जैसे वह सामने पेड़ से सेब तोड़कर खाता शुतुरमुर्ग. वाह, क्या कल्पना है." मुसीबतचंद बोला.
शेफाली ने मुसीबत्चंद की और अजीब दृष्टि से देखा, "माफ़ कीजिएगा, शायद आपको ग़लतफ़हमी हो गई है. उस पेंटिंग में तो मैं ने गिटार बजाता लड़का बनाया है."
"ओह, आइ एम् सारी. मैं शायद ठीक से देख नही पाया. लेकिन उसके बगल वाली पेंटिंग में अपने मकडी के जालों का बहुत सुन्दर चित्रण किया है." मुसीबतचंद ने अपनी झेंप मिटने के लिए शेफाली का ध्यान दूसरी तरफ़ आकृष्ट करा दिया.
"आप शायद मेरी परीक्षा ले रहे हैं." शेफाली बोला,"उस पेंटिंग में तो जीवन की उलझनें हैं."
"ओह. माडर्न आर्ट समझना तो वास्तव में तीव्र बुद्धि मांगता है. अब आप उस कोने वाली पेंटिंग के बारे में भी बता दीजिये. क्योंकि मेरी ऑंखें तो केवल उसमें एक पेड़ देख रही हैं."मुसीबतचंद ने हार मांगते हुए कहा.
"तुम्हारी आँखों ने इसबार धोखा नही दिया. वह पेड़ ही है." इसबार हंसराज बोला,"किन्तु समस्या ये है कि वह कोई पेंटिंग नही है बल्कि आर्ट गैलरी की एक खिड़की है. जिससे सामने मैदान का पेड़ दिख रहा है."
"न जाने कैसे कैसे लोग चले आते हैं." शेफाली बड़बड़ाता हुआ वहाँ से हट गया.
इस तरह कभी 'बिना सर का पैर' और 'कभी पत्थर का बच्चा' देखते हुए ये लोग उस कमरे में पहुँच गये जहाँ लेओनार्दो कि पेंटिंग रखी थी.
......continued

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