Thursday, January 17, 2008

Hindi Comedy Novel

चार सौ बीस - एपिसोड 8
रात के उस समय दो बज रहे थे जब ये दोनों एक अँधेरी गली में खड़े थे. आगे एक मोड़ के बाद ही लाला का मकान था. मोड़ के पास पहुँचते ही उन्हें पदचाप की आवाज़ सुनाई दी.
"लगता है कोई आ रहा है." सोनिया ने धीरे से कहा.
"श...श, चुप रहो. आने वाला यहाँ का चौकीदार हो सकता है." हंसराज बोला, और दोनों वहां के एक अंधेरे कोने में दुबक गये.
काफ़ी देर हो गई. और कोई सामने नही आ. सोनिया ने बाहर निकलना चाह, किन्तु हंसराज ने उसका हाथ पकड़ लिया.
"चुपचाप खड़ी रहो," हंसराज ने फुसफुसा कर कहा. उसने हमारी आहट सुन ली है. और हमारी ताक में खड़ा है."
कुछ देर और बीती, फिर हंसराज के रोकने के बावजूद सोनिया आगे बढ़ गई.
"वह देखो, तुम्हारा चौकीदार." उसने कहा और हंसराज ने डरते डरते मोड़ की तरफ़ गर्दन घुमाई. सामने एक लावारिस गधा खड़ा हुआ उनकी तरफ़ टुकुर टुकुर देख रहा था.
"धत तेरे की. हम लोगों ने बेकार इतना टाइम ख़राब किया." हंसराज बोला और वे लोग आगे बढ़ने लगे. कुछ देर बाद वे लोग लाला के घर के सामने थे.
कम्पाउंड के प्रकाश में इनकी आकृतियाँ स्पष्ट हो गईं. दोनों ने चुस्त काले लिबास पहन रखे थे, जिससे जुड़े हुए दो नकाब भी थे. जिन्हें फिलहाल इन्होंने अपनी गर्दन पर लटका रखे थे.
"इधर तो प्रकाश है. हमें पीछे घूमकर जाना पड़ेगा." हंसराज ने कहा और वे लोग आगे बढ़कर एक गली में मुड़ गये जो लाला के मकान के पीछे जाती थी.
फिर मकान के पीछे उन्हें एक पाइप दिख गया जो पानी की निकासी के लिए था. उन्होंने इस पाइप के सहारे ऊपर चढ़ने का निश्चय किया.
दोनों ऊपर चढ़ने लगे. कुछ देर बाद वे छत पर थे.
......continued

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