Tuesday, December 4, 2007

Hindi Comedy Novel By Zeashan Zaidi

चार सौ बीस - एपिसोड 5
नहीं, लेकिन छूटने ही वाली है. आप जल्दी जाइए." हंसराज ने कहा और वह व्यक्ति दौड़ता हुआ आगे निकल गया. किन्तु उसे नही मालूम था कि उसका पर्स हंसराज की जेब में ही रह गया है.
बाहर आकर हंसराज ने एक रिक्शा किया, "चौरंगी लेन चलो." रिक्शे पर बैठते हुए उसने कहा.
गंतव्य स्थान पर पहुंचकर उसने किराया दिया और एक मकान की तरफ़ बढ़ा, किन्तु दरवाज़े के सामने पहुंचकर ठिठक गया.
"यह मकान का ताला कैसे खुला है." वह बड़बड़ाया. कुछ देर वहीं खड़े रहने के बाद उसने दरवाज़ा खोल दिया और अन्दर दाखिल हो गया.
"तुम!" वह सामने देखकर चौंका जहाँ कुर्सी पर एक भारी भरकम शरीर का व्यक्ति बैठा था.
"मैं ने सोचा कि तुम तो आओगे नहीं सो मैं ही चला आया. तुम्हारे घर पर हमेशा कि तरह ताला पड़ा था और मुझे तुम से मिलना ज़रूरी था. इसलिए मजबूरन तुम्हारे एक ताले का नुकसान करना पड़ा." उसने एक कुटिल मुस्कराहट के साथ कहा.
"ओह!" हंसराज ने एक ठंडी साँस भरकर कहा, "और मेरे फ्रिज का भी सफाया कर रखा है." कोने में रखे फ्रिज की और देखते हुए उसने कहा.
"क्या करता. यहाँ बैठे बैठे भूख लग गई थी. अब ये सब बातें छोड़ो और असली बात की तरफ़ आ जाओ. ये बताओ की मेरे पाँच हज़ार रुपए कब लौटाओगे? जो एक साल पहले इस वादे पर लिए थे कि एक महीने बाद लौटा दोगे." उसने हंसराज की आंखों में देखते हुए कहा.
"लाला जी बस एक महीने का टाइम और. भगवान ने चाहा तो अगले महीने की पहली तारीख को मैं आपका पैसा ब्याज सहित चुकता कर दूँगा." हंसराज ने अपने हाथ में पकड़ा ब्रीफकेस नीचे रखते हुए कहा.
"अब मैं तुम्हें एक दिन का भी समय नही दे सकता." लाला ने त्योरियों पर बल डालते हुए कहा. फिर उसकी आंखों में चमक आ गई. "इस ब्रीफकेस में काफ़ी माल लग रहा है. मेरा विचार है कि इसमें मेरी रकम निकल आयेगी."
"यह ब्रीफकेस मेरे एक दोस्त का है. और मैं नही जानता कि इसमें क्या है." हंसराज ने ब्रीफकेस किनारे खिसकाते हुए कहा.
"यह सब मैं कुछ नही जानता. मुझे मेरी रकम मिलनी चाहिए. तुम अपने दोस्त से कह देना कि तुमने कुछ रूपये उधार ले लिए हैं."
"लेकिन मेरे पास इसकी चाबी नही है."
"मुझे विश्वास तो नही है कि ये ब्रीफकेस तुम्हारा नही है. लेकिन फिर भी मैं जानता हूँ कि तुम ये ब्रीफकेस बिना चाबी के भी खोल सकते हो. क्योंकि तुमने एक बार एक दुकान का ताला तार से खोल दिया था. उस ताले की चाबी खो गई थी."
"ठीक है." हंसराज ने ठंडी साँस भरते हुए कहा, "मैं तार ले आता हूँ. आज तुम ऐसे नही टलोगे."
"तुम्हें तार लाने के लिए कहीं जाने की ज़रूरत नही है. वह कोने में पड़ा है."
हंसराज के पास अब इसके अलावा और कोई चारा नही रह गया था कि वह तार उठाकर ब्रीफकेस खोलना शुरु कर देता. लाला अब पास आ गया था.
फिर ब्रीफकेस खुल गया. और साथ ही दोनों की आँखें भी.
............continued.

1 comment:

Anonymous said...

This is great info to know.