Tuesday, November 27, 2007

Novel by Zeashan Zaidi

चार सौ बीस - एपिसोड 4
"जी हाँ. सिगरेट पीने में तभी मज़ा आता है जब वह बढ़िया क्वालिटी की हो. किन्तु स्वास्थ की गारंटी तो कोई सिगरेट नही दे सकती." हंसराज ने मुस्कुराते हुए कहा.
"ये बात तो है." रेवती रमन ने कहा.कुछ देर बाद उसने बची हुई सिगरेट बाहर फेंकी और फिर अचानक अपना पेट पकड़ लिया. उसका चेहरा पसीने से भीग गया था.
"क्या बात है रेवती जी?" हंसराज ने उसे गौर से देखते हुए कहा.
"मेरी तबीयत कुछ ख़राब हो रही है." रेवती रमन ने एक उबकाई ली और खिरकी से सर निकाल कर काफी कुछ उगल दिया.फिर वह उठ खड़ा हुआ, "मैं ज़रा बाथरूम तक जा रहा हूँ."
हंसराज भी उठा और उसे सहारा देकर बाथरूम की तरफ़ ले जाने लगा
.................
गाड़ी की गति अब कम होने लगी. कोंकी कोई स्टेशन आ रहा था. कुछ देर बाद हंसराज वापस आया और अपना थैला और रेवती रमन का ब्रीफकेस उठाने लगा.
"आप कहीं और जा रहे हैं?" वहाँ बैठे एक यात्री ने पूछा.
"जी हाँ. मुझे इसी स्टेशन पर उतरना है. और मेरे साथी की तबियत ख़राब हो गई है अतः वह भी यहीं उतर जायेगा." हंसराज ने कहा और सामान उठाकर आगे बढ़ गया. चूंकि और लोग दोनों को घुलमिल कर बातें करते हुए देख चुके थे अतः किसी ने अधिक पूछताछ नही की.
गाड़ी स्टेशन पर एक मिनट के लिए रुकी और फिर चल दी. अभी उसे चले हुए थोडी ही देर हुई थी कि रेवती रमन अपने चेहरे को रूमाल से पोंछता हुआ वापस आ गया.
"क्या आप स्टेशन पर नही उतरे?" वहां बैठे यात्री ने चौंक कर पूछा.
"नहीं. मुझे तो अभी काफ़ी आगे जाना है. मैं तो अभी बाथरूम गया था क्योंकि मेरी तबीयत थोडी ख़राब हो गई थी." रेवती रमन ने सीट पर बैठते हुए कहा.
"किन्तु आपके साथी तो कह रहे थे कि आपको इसी स्टेशन पर उतरना है. और वे आपका ब्रीफकेस भी ले गये." उसी यात्री ने दुबारा कहा.
"क्या?" रेवती रमन ने चौंक कर कहा. फिर सीट के नीचे देखने लगा जहाँ से ब्रीफकेस नदारद था."ओह, तो वह कोई ठग था." रेवती रमन के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थीं. उसने सहयात्री को संबोधित किया,"जिसे आप मेरा साथी समझ रहे हैं वह कोई ठग था जो मेरा ब्रीफकेस ले उड़ा. और साथ में मेरे पचास हज़ार रूपये भी. अब मेरी समझ में पूरी बात आ रही है. उसने मुझे जो सिगरेट दी थी उसमें अवश्य कोई खतरनाक वस्तु थी. जिसके कारण मेरी तबीयत ख़राब हो गई थी और मुझे यहाँ से हटना पड़ा. और उसने अपना काम कर दिखाया."
अब तक आसपास के सभी यात्री रेवती रमन की ओर मुखातिब हो गये थे.
"इसी कारण मैं ने स्लीपर में यात्रा नही की थी क्योंकि वहाँ चोरी होने की घटनाएं अधिक होती हैं. किन्तु क्या पता था कि यहाँ भी ताक लिया जाऊंगा."
"आपको अगले स्टेशन पर उतरकर रिपोर्ट लिखवा देनी चाहिए." एक यात्री ने सुझाव दिया.
"यही करना पड़ेगा. अब तो मैं आर्डर लेने भी नही जा सकता." फिर वहाँ काफ़ी देर इसी विषय में बातें होती रहीं.
...................
वह ठग यानी हंसराज ट्रेन में चार शिकार करने के बाद अब स्टेशन के गेट से बाहर निकल रहा था कि एक व्यक्ति से टकरा गया. "माफ़ कीजियेगा," वह व्यक्ति काफ़ी घबराया हुआ लग रहा था. क्या हावड़ा एक्सप्रेस निकल गई?"

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