Sunday, May 11, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 33

फिर काफी देर परेशान होने के बाद जब चाकलेट का पाउच फटकर उसके मुंह में मिठास घोलने लगा तो उसकी समझ में आया कि वो बत्तीसी के बजाये कुछ और अपने मुंह में रख चुका था.
"तुम ठीक तो हो सोनिया?" हंसराज सोनिया से पूछ रहा था. सोनिया ने स्वीकारात्मक रूप में सर हिलाया और रूमाल निकालकर अपने चेहरे को साफ करने लगी. क्योंकि बत्तीसी के साथ साथ थूक की छीटें भी उसके चेहरे पर पड़ी थीं. उसकी नाक लाल हो गई थी.
बूढे ने नकली बत्तीसी अपने मुंह में फिट की और बोला, "अच्छा तो अब मैं चलता हूँ."
इन लोगों ने उसे रोकने की कोशिश की किंतु वो फिर रूका नही. क्योंकि अपनी बत्तीसी के कारण वो बुरी तरह शर्मिंदा हो गया था.
"चला गया कमबख्त. कहता था कि अभी तो मैं जवान हूँ." सोनिया बड़बड़ाई.
"आसामी मालदार लगता है. उस पर हाथ साफ किया जा सकता है." हंसराज कुछ और सोच रहा था.
"पोर्ट्रेट पर हाथ साफ करने के बाद अब कहीं और सेंध लगाने की क्या आवश्यकता रह गई है?" सोनिया बोली.
"धीरे बोलो. दीवारों के भी कान होते हैं. पोर्ट्रेट का मूल्य मिलने में हमें अभी देर लगेगी. तब तक काम चलने के लिए कहीं से इन्तिजाम करना ही पड़ेगा."
"क्या उसका कोई खरीदार मिला?"
"मैं ने तुमसे कहा न कि उसका खरीदार पहले से तै है. और वो हमें मुंह मांगी कीमत देगा."
" कौन है वो खरीदार?" सोनिया ने उत्सुकता से पूछा."
.......................
मुसीबतचंद ने आश्चर्य से घर को देखा. क्योंकि वहाँ पूरी तरह सन्नाटा छाया था.
वो अभी अभी थाने से घर पहुँचा था और ज्योतिषी कि वेशभूषा में था.
"कमाल है, कहाँ गये ये लोग? घर पर तो ऐसा सन्नाटा छाया है जैसे करफयू लग गया हो."
वो इधर उधर टहलने लगा. तभी किसी ने पीछे से उसका कालर पकड़ लिया और वो हडबडा कर पीछे हटा.
पीछे एक मोटा तगड़ा व्यक्ति खड़ा लाल लाल आँखों से उसे घूर रहा था. किंतु जब उसने मुसीबतचंद का चेहरा देखा तो तुरंत कालर छोड़ दिया.
"कौन हो तुम? हंसराज कहाँ है?" उस व्यक्ति ने पूछा.
"पता नही. मैं भी उसे ढूँढ रहा हूँ." मुसीबतचंद ने जवाब दिया.
"क्यों? क्या उसने तुम्हें भी चोट दी है?" उस व्यक्ति ने पूछा.
.........continued

1 comment:

Prabhakar Pandey said...

बढ़िया । जारी रखें। लिखते रहें।