"और अब अपने फाएदे की बात सुनो. तुम तुंरत गाँव वापस जाओ क्योंकि वहीँ तुम्हें एक बड़ा लाभ होने वाला है."
"कैसा लाभ ज्योतिषी महाराज?"
"समय आने पर मालुम हो जाएगा. मैं जाता हूँ. मुझे देर हो रही है." मुसीबतचंद ने उसे रोकना चाहा किंतु वह जल्दी से पीछा छुड़ाकर आगे निकल गया.
"कैसा लाभ हो सकता है?" उसने अपने हाथ की लकीरों को देखना चाहा किंतु कोई सफलता नही मिली.
"थोड़े रुपये और कमा लूँ फिर गाँव को निकल जाऊंगा." उसने स्वयें से कहा और आवाज़ लगता हुआ आगे बढ़ गया.
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रोशन और सौम्य मनोहरश्याम के सामने पोर्ट्रेट लेकर पहुँच चुके थे. और अब उसे प्राप्त करने का पूरा किस्सा सुना रहे थे.
जब वे लोग पूरी बात बता चुके तो मनोहरश्याम कुछ क्षण मौन रहकर बोला, "तो ये पता नही लग पाया कि पोर्ट्रेट को चुराने वाला कौन था."
"नहीं. पुलिस को भी ये आभास नही हो पाया कि कब उसके पास से डालरों का सूटकेस पोर्ट्रेट में बदल दिया गया."
"ठीक है. तुम लोग कुछ देर बाद मुझसे मिलना. मैं थोडी देर के लिए एकांत चाहता हूँ. पोर्ट्रेट यहीं छोड़ दो."वे लोग बाहर निकल गए. उनके जाने के बाद मनोहरश्याम ने फोन उठाया और बॉस का नंबर मिलाने लगा. दूसरी ओर से तुंरत सम्बन्ध स्थापित हो गया.
"क्या रहा?" दूसरी ओर से पूछा गया. जवाब में मनोहरश्याम ने पूरी कहानी सुना दी. फिर बोला, "मेरा विचार है कि डालरों और पोर्ट्रेट कि अदला बदली इं.दिनेश के पहाड़ियों तक पहुँचने से पहले ही हो गई थी."
"यह तो साफ़ ही है. इसी कारण से इं.दिनेश को स्पेशल रास्ते से बुलाया गया था. वैसे पोर्ट्रेट मिल जाने से हमारा काफी सरदर्द दूर हो गया." बॉस ने कहा."किंतु यह समस्या अपने स्थान पर है कि वह अज्ञात चोर कौन है और किस प्रकार उसके पास पोर्ट्रेट पहुँचा."
"अज्ञात चोर वही है जिसका चित्र मैंने तुम्हारे पास भिजवाया है. जब हम उसकी भरतपुर में खोज कर रहे थे उस समय तक वह इस शहर में वापस आ चुका था.रही बात पोर्ट्रेट के उस तक पहुँचने की तो इसमें अवश्य हमारे किसी व्यक्ति का हाथ है. जो हमसे गद्दारी कर रहा है.और जब उसका पता चलेगा तभी हम यह ज्ञात कर पायेंगे कि पोर्ट्रेट किस प्रकार उसके पास पहुँचा."
"बॉस, गंगाराम का कई दिनों से कुछ पता नही है. मुझे तो पूरा विश्वास हो गया है कि गद्दार वही है."
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