Tuesday, May 6, 2008

चार सौ बीस - एपिसोड 32

"चीख क्यों रहे हैं? अगर इतना ही चाकलेट खाने का शौक है तो हम अपनी चाकलेट आपको दिए दे रहे हैं. सोनिया मैं तुम्हें दूसरी चाकलेट बाज़ार से खरीद दूँगा, ये चाकलेट श्रीमान जी को दे दो." सोनिया को संबोधित करते हुए हंसराज ने एक आंख दबाई.
"अरे वाह, मैं क्यों अपनी चाकलेट दूँ. अंकल, आप अपने लिए चाकलेट बाज़ार से खरीद लें." सोनिया ने बूढे को संबोधित किया और बूढा एकदम से ढीला पड़ गया.
"ठीक है मिस, मैं दूसरी चाकलेट ले लूंगा. किंतु मेरा विचार है कि मैं इतना बूढा भी नही हूँ कि आप मुझे अंकल कहिये." उसने सोनिया की तरफ मुस्कुराकर देखा और हंसराज अपना सर सहलाने लगा.
"आप खड़े क्यों हैं. बैठिये." सोनिया ने कहा और बूढा वहाँ रखी तीसरी कुर्सी पर बैठ गया.
"बाई दा वे, मुझे लोग सेठ धीरुमल कहते हैं. क्या मैं आपका शुभ नाम जान सकता हूँ?" बूढा अब लगातार सोनिया की ओर देख रहा था. हंसराज की ओर उसने एक बार भी नही देखा जो 'सेठ' शब्द सुनकर चौंक पड़ा था.
"मेरा नाम स..सीमा है." सही नाम बताने से पहले ही हंसराज ने सोनिया के पाँव पर अपना पाँव रख दिया. अतः सोनिया ने तुरंत अपना नाम बदल दिया.
"सीमा अच्छा नाम है. लगता है जैसे हर ओर फूलों की सुगंध फैल रही है." बूढा अब बहकने लगा था. सोनिया ने हंसराज की ओर देखा जिसके होंटों पर हलकी मुस्कराहट थी.
हंसराज ने सोनिया को इशारा किया और सोनिया ने पूछा, "सेठ जी, आपका कारोबार क्या है?"
"लगता है आप इस शहर में पहली बार आए हैं. सेठ धीरुमल को तो यहाँ का बच्चा बच्चा जनता है. यहाँ की सबसे मशहूर हलवाई की दूकान सेठ धीरुमल की है." उसने अकड़ कर कहा.
"ओह, तभी आपको मिठाइयाँ और चाकलेट बहुत पसंद हैं?" सोनिया बोली.
"हा..हा..हिप." कहकहा लगते हुए सेठ ने जल्दी से अपने मुंह पर हाथ रखा किंतु उससे पहले ही उसकी नकली बत्तीसी खुले मुंह से बाहर आई और सोनिया की नाक से किसी बुलेट की तरह टकरा गई.
सोनिया अपनी नाक पकड़कर झुक गई. हंसराज जल्दी से उठकर उसके पास पहुँचा और उसकी नाक सहलाने लगा. जबकि सेठ एकदम से शर्मिंदा हो गया था.
"माफ कीजियेगा. मैं भूल गया था की मेरी बत्तीसी नकली है." बौखलाहट में वो बत्तीसी के बजाये वहाँ रखा चाकलेट का पाउच अपने मुंह में लगाने लगा.
......continued

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